यह भी पढ़े: बघेरे के मूवमेंट से लोगों में दहशत, अब तक आधा दर्जन पशुओं को बनाया शिकार, वन विभाग ने पिंजरा लगाया पर पकड़ में नहीं आया नाका वनपाल लल्लूलाल बुटोलिया ने बताया कि डगोता नाका अधीन नाल क्षेत्र में दिसम्बर माह के प्रथम पखवाड़े में दुर्लभ स्तनधारी जीव पैंगोलीन दिखाई दिया, जो इस क्षेत्र में पहली बार दिखाई दिया है। सरिस्का क्षेत्र में तालवृक्ष इलाके में पहले कभी-कभार पैंगोलीन जीव दिखाई दे चुके हैं लेकिन इस क्षेत्र में यह पहली बार दिखा है।
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वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत अनुसूची प्रथम का जीव पैंगोलीन इसके बढ़ते शिकार के कारण अब विलुप्त होने के कगार पर है। जीव की तस्करी के कारण शिकार की घटनाएं बढ़ गई। वाइल्ड लाइफ संस्था द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार देश में वर्ष 1990 से 2008 के बीच पैंगोलीन के शिकार के तीन मामले सामने आए, जबकि 2009 से 2013 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 320 हो गया। पैंगोंलीन के बढ़ते शिकार के कारण अब यह जीव विलुप्त होने के कगार पर है।
वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत अनुसूची प्रथम का जीव पैंगोलीन इसके बढ़ते शिकार के कारण अब विलुप्त होने के कगार पर है। जीव की तस्करी के कारण शिकार की घटनाएं बढ़ गई। वाइल्ड लाइफ संस्था द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार देश में वर्ष 1990 से 2008 के बीच पैंगोलीन के शिकार के तीन मामले सामने आए, जबकि 2009 से 2013 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 320 हो गया। पैंगोंलीन के बढ़ते शिकार के कारण अब यह जीव विलुप्त होने के कगार पर है।
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फोली डोटागण का एक स्तनधारी जीव पैंगोलीन के शरीर पर केराटीन के बने शल्क (स्केल) नुमा संरचना होती है। बेहद शर्मीली पृवति का जीव पैंगोलीन भोजन के रूप में अमूमन दीमक व चिंटियों को ही अपना निवाला बनाता है। भोजन की तलाश में यह अधिकतर दीमक के बिलों के अन्दर ही रहता है। कभी-कभार यह भोजन की तलाश में बाहर आ जाता है। इसके शरीर पर मौजूद शल्कों के कारण वन्य जीव इसका शिकार नही कर पाते तथा शिकार से बचने के लिए यह कुण्डली का आकार बना लेता है। डायनोसोर का वंशज माने जाने वाले इस जीव की औसत आयु 2 वर्ष की होती है।
फोली डोटागण का एक स्तनधारी जीव पैंगोलीन के शरीर पर केराटीन के बने शल्क (स्केल) नुमा संरचना होती है। बेहद शर्मीली पृवति का जीव पैंगोलीन भोजन के रूप में अमूमन दीमक व चिंटियों को ही अपना निवाला बनाता है। भोजन की तलाश में यह अधिकतर दीमक के बिलों के अन्दर ही रहता है। कभी-कभार यह भोजन की तलाश में बाहर आ जाता है। इसके शरीर पर मौजूद शल्कों के कारण वन्य जीव इसका शिकार नही कर पाते तथा शिकार से बचने के लिए यह कुण्डली का आकार बना लेता है। डायनोसोर का वंशज माने जाने वाले इस जीव की औसत आयु 2 वर्ष की होती है।
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पैंगोलीन सरिस्का बाघ परियोजना के तालवृक्ष, चम्बल घाटी तथा मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में सिवनी, मंडला, कटनी व अमरकंटक के जंगलों में प्रमुखता से पाया जाता है। दीमक के बिलों में रहने के कारण इसकी गणना नहीं होने के कारण इसकी वास्तविक संख्या की जानकारी मिलना मुश्किल रहता है।
पैंगोलीन सरिस्का बाघ परियोजना के तालवृक्ष, चम्बल घाटी तथा मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में सिवनी, मंडला, कटनी व अमरकंटक के जंगलों में प्रमुखता से पाया जाता है। दीमक के बिलों में रहने के कारण इसकी गणना नहीं होने के कारण इसकी वास्तविक संख्या की जानकारी मिलना मुश्किल रहता है।
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डगोता नाका क्षेत्र नाल इलाके में दिसम्बर माह के पहले पखवाड़े में एक पैंगोलीन दिखाई दिया, जो इस क्षेत्र में पहली बार दिखा है। पैंगोलीन अधिकांशत: दीमक के बिलों में रहने के कारण इसकी गणना नहीं हो पाती। जिसके कारण सरिस्का क्षेत्र में इसकी वास्तविक संख्या की जानकारी नहीं है, लेकिन यह जीव अब विलुप्त होने के कगार पर है।
जनेश्वरसिंह, अजबगढ़ रेंज प्रभारी, सरिस्का बाघ परियोजना
डगोता नाका क्षेत्र नाल इलाके में दिसम्बर माह के पहले पखवाड़े में एक पैंगोलीन दिखाई दिया, जो इस क्षेत्र में पहली बार दिखा है। पैंगोलीन अधिकांशत: दीमक के बिलों में रहने के कारण इसकी गणना नहीं हो पाती। जिसके कारण सरिस्का क्षेत्र में इसकी वास्तविक संख्या की जानकारी नहीं है, लेकिन यह जीव अब विलुप्त होने के कगार पर है।
जनेश्वरसिंह, अजबगढ़ रेंज प्रभारी, सरिस्का बाघ परियोजना