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कोटपूतली (जयपुर) के गांव किरादोद में जन्मे पृथ्वीसिंह के बचपन की कहानी बड़ी रोचक है। आर्थिक रूप से तंग किसान परिवार में जन्मे पृथ्वी को दो-तीन साल की उम्र में तेज बुखार हुआ। इलाज के दौरान गलत इंजेक्शन लगने के बाद उसे पोलियो हो गया। जज्बे के बूते उसने पढ़ाई की। पृथ्वी ने किरादोद, प्रागपुरा व पावटा में पढ़ाई की। वह ट्राइसाइकिल से रोजाना छह किलोमीटर पढऩे जाता था। जयपुर के भवानी निकेतन कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष में प्रवेश ले लिया, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण नियमित पढ़ाई नहीं कर पाया तो ट्राईसाइकिल पर ही चलता-फिरता एसटीडी सेंटर खोल लिया।
कोटपूतली (जयपुर) के गांव किरादोद में जन्मे पृथ्वीसिंह के बचपन की कहानी बड़ी रोचक है। आर्थिक रूप से तंग किसान परिवार में जन्मे पृथ्वी को दो-तीन साल की उम्र में तेज बुखार हुआ। इलाज के दौरान गलत इंजेक्शन लगने के बाद उसे पोलियो हो गया। जज्बे के बूते उसने पढ़ाई की। पृथ्वी ने किरादोद, प्रागपुरा व पावटा में पढ़ाई की। वह ट्राइसाइकिल से रोजाना छह किलोमीटर पढऩे जाता था। जयपुर के भवानी निकेतन कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष में प्रवेश ले लिया, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण नियमित पढ़ाई नहीं कर पाया तो ट्राईसाइकिल पर ही चलता-फिरता एसटीडी सेंटर खोल लिया।
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यूं बदली तकदीर
सर्वोदयी विकलांग समिति की ओर से वर्ष 2002 में रामनिवास बाग से जवाहर सर्किल तक ट्राईसाइकिल दौड़ करवाई, जिसमें उसने भी हिस्सा लेकर प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके बाद तो हौसला बढ़ता गया। वर्ष 2008 में दिल्ली में रहकर विशेष शिक्षा में बीएड की। इसके बाद छोटा-मोटा काम शुरू कर दिया। इस दौरान दिव्यांगों की व्हील चेयर क्रिकेट टीम में शामिल होने का मौका मिला तो दिन बदल गए। दिल्ली टीम में शानदार ऑल राउंडर प्रदर्शन पर भारतीय व्हील चेयर क्रिकेट टीम में जगह बनाई। पृथ्वी व्हीलचेयर क्रिकेट में देश में ही नहीं, विदेशी धरती पर भी धाक जमाकर भारतीय टीम को विजय दिला चुके हैं।
यूं बदली तकदीर
सर्वोदयी विकलांग समिति की ओर से वर्ष 2002 में रामनिवास बाग से जवाहर सर्किल तक ट्राईसाइकिल दौड़ करवाई, जिसमें उसने भी हिस्सा लेकर प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके बाद तो हौसला बढ़ता गया। वर्ष 2008 में दिल्ली में रहकर विशेष शिक्षा में बीएड की। इसके बाद छोटा-मोटा काम शुरू कर दिया। इस दौरान दिव्यांगों की व्हील चेयर क्रिकेट टीम में शामिल होने का मौका मिला तो दिन बदल गए। दिल्ली टीम में शानदार ऑल राउंडर प्रदर्शन पर भारतीय व्हील चेयर क्रिकेट टीम में जगह बनाई। पृथ्वी व्हीलचेयर क्रिकेट में देश में ही नहीं, विदेशी धरती पर भी धाक जमाकर भारतीय टीम को विजय दिला चुके हैं।
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खेलों का मिला फायदा
दिव्यांग पृथ्वीसिंह ने व्हील चेयर क्रिकेट के अलावा गोला फेंक, भाला फेंक व तश्तरी फेंक में भी हाथ आजमाया और सफल रहे। इस दौरान उनकी शादी दिव्यांग उमा से हो गई, जो खुद राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी है। ये दम्पती विभिन्न प्रतियोगिताओं में दर्जनों मैडल जीत चुके हैं। पृथ्वीसिंह ने बताया कि उदयपुर में पिछले माह 24 से 27 दिसम्बर तक हुई आठवीं राजस्थान स्टेट पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में भी उसने तश्तरी फेंक में गोल्ड मेडल जीता तथा उसकी पत्नी उमा देवी ने भाला व तश्तरी फेंक में गोल्ड मेडल एवं गोला फेंक में सिल्वर पदक जीता है।
खेलों का मिला फायदा
दिव्यांग पृथ्वीसिंह ने व्हील चेयर क्रिकेट के अलावा गोला फेंक, भाला फेंक व तश्तरी फेंक में भी हाथ आजमाया और सफल रहे। इस दौरान उनकी शादी दिव्यांग उमा से हो गई, जो खुद राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी है। ये दम्पती विभिन्न प्रतियोगिताओं में दर्जनों मैडल जीत चुके हैं। पृथ्वीसिंह ने बताया कि उदयपुर में पिछले माह 24 से 27 दिसम्बर तक हुई आठवीं राजस्थान स्टेट पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में भी उसने तश्तरी फेंक में गोल्ड मेडल जीता तथा उसकी पत्नी उमा देवी ने भाला व तश्तरी फेंक में गोल्ड मेडल एवं गोला फेंक में सिल्वर पदक जीता है।
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ऐसे संवार रहे हैं दिव्यांगों का भविष्य
दिव्यांग पृथ्वी की मानें तो वे जयपुर जिले सहित प्रदेश के विभिन्न जिलों के दिव्यांगों के सम्पर्क करके उनको खेलों में लाने के लिए प्रोत्साहित करने की जिम्मेदारी उठा रहे हैं। वे अब तक कई दिव्यांगों को खेलों से जोड़ भी चुके हैं। उनका सपना है कि वे सरकार या किसी भामाशाह का सहयोग लेकर प्रशिक्षण केन्द्र खोलना चाहते हैं, जिसमें दिव्यांग खिलाडिय़ों को विशेषज्ञों की ओर से कोचिंग दिलवाई जा सके, जिससे उनको आगे बढऩे का मौका मिल सके।
ऐसे संवार रहे हैं दिव्यांगों का भविष्य
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सरकार भी कर रही सहयोग
खेलकूद कोटे से भर्ती हुए बस्सी में सहायक कृषि पर्यवेक्षक के पद पर कार्यरत पृथ्वी ने बताया कि राज्य सरकार भी स्टेट और नेशनल टूर्नामेंट में मैडल जीतने वाले खिलाडिय़ों को न सिर्फ अनुदान राशि देती है, बल्कि सरकारी नौकरी में भी दो प्रतिशत का आरक्षण दे रही है, जिससे दिव्यांगों की तकदीर बदल सकती है।
सरकार भी कर रही सहयोग
खेलकूद कोटे से भर्ती हुए बस्सी में सहायक कृषि पर्यवेक्षक के पद पर कार्यरत पृथ्वी ने बताया कि राज्य सरकार भी स्टेट और नेशनल टूर्नामेंट में मैडल जीतने वाले खिलाडिय़ों को न सिर्फ अनुदान राशि देती है, बल्कि सरकारी नौकरी में भी दो प्रतिशत का आरक्षण दे रही है, जिससे दिव्यांगों की तकदीर बदल सकती है।