नई बसों के अभाव में यात्रियों को आगार की खटारा बसों के सहारे सफर करना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में जयपुर मुख्यालय ने ८७६ नई बसों की खरीद की थी। जिनमें से ३१६ बसें तैयार कर प्रदेश के ४४ आगारों को भेजी जा चुकी है। जबकि प्रदेश के सात आगार अभी तक नई बसों के इंतजार में है। इनमें शाहपुरा आगार भी शामिल है। कहने को तो आगार में ५२ बसें है, लेकिन इनमें से पांच गाडियां आवश्यक पार्टस के अभाव में मरम्मत के लिए कार्यशाला में खड़ी है। जिनमें दो गाडियां केन्द्रीय कार्यशाला जयपुर और तीन गाड़ी शाहपुरा आगार में खड़ी है। अन्य ४७ गाडियों की भी स्थिति ठीक नहीं है।
सभी गाडियां २०१३-१४ मॉडल की है। आगार को प्रतिदिन राजस्व करीब साढ़े तीन लाख से अधिक होने के बावजूद निगम के उच्चधिकारियों ने आगार को नजर अंदाज कर रखा है। रूट पर संचालित बसें खटारा है। इनमें हॉर्न से ज्यादा खट-खट की आवाज आती है। कई बसें धक्का स्टार्ट भी है। जो कभी भी बीच रास्ते में बंद हो जाती है। इससे यात्रियों को मजबूरन धक्का देना पड़ता है।(का.सं.)
नहीं मिलते पर्याप्त पाट्र्स बसों में छोटी-मोटी खराबी को दुरुस्त करने के लिए आगार में वर्कशॉप है, लेकिन मुख्यालय से पर्याप्त पाट्र्स नहीं मिल पा रहे है। वर्कशॉप में लगे कर्मचारी जैसे-तैसे खराबी को दूर कर रूट पर बसों को रवाना कर देते है, लेकिन कुछ किलोमीटर चलने के बाद वहीं समस्या आ जाती है। वर्कशॉप में गियर बॉक्स, कबाणी के पत्ते, आरसी सेलप, विल बोरिंग, विल हब और शटर के शीशे आदि पाट्र्स की कमी खल रही है। ——–कबानी टूटने की आ रही समस्या बसों में आए दिन कबानी टूटने की भी शिकायतें आ रही है। अचानक कबानी टूटने से चालक बस को संभाल नहीं पाता है। इससे हादसे की संभावना बढ़ जाती है। करीब छह माह पहले जयपुर-दिल् ली हाईवे पर मनोहरपुर पुलिया के पास कबानी टूटने से एक बस अनियंत्रित होकर सड़क से नीचे चली गई थी।
बरसात का पानी भी टपकता बसों में तो बरसात का पानी भी टपकता है। वहीं कई बसों के शीशे टूटे हुए है। जिनकी जगह टिनशेड़ की चद्दरें लगा रखी है। रूट संचालित अधिकतर बसों में शिकायत पेटिका, फस्र्ट एंड बॉक्स, अग्निशमन यंत्र भी नहीं है।
—–इनका कहना है-अभी तक नई बसें नहीं मिली है। मिलने की उम्मीद है। वर्तमान में संचालित गाडियां पुरानी है।——–विक्रमलाल मीणा, प्रबंधक संचालन, आगार शाहपुरा।