लुहाकना खुर्द निवासी पूर्व सुबेदार दरियाव सिंह ने बताया कि भारत पाक 1971 के युद्ध के समय हमारी मीडियम रेजीमेंट 102 एमएम ढाका में थी। The heroes of the small village of Jaipur showed courage in Bangladesh’s independence.युद्ध शुरू होने पर जानकारी मिली कि पाकिस्तानी सैनिक ढाका में तीन साल से बंकरों में रह रहे हंै। पाक सैनिकों ने बांग्लादेशी महिलाओं को साथ रखते थे। युद्ध के दौरान हमने बड़े तोपखाने से कई बंकरों को उड़ा दिया। लड़ाई के दौरान दो-दो दिन भूखे भी रहे। युद्ध में जख्मी सैनिकों की आर्मी मेडिकल कौर उपचार करती थी, जबकि गम्भीर हाल में वायुयान से कोलकत्ता बेस अस्पताल भिजवाया जाता था। इस दौरान करीब एक साल तक परिवार के लोगों से कोई सम्पर्क नहीं हो पाया था।
लुहाकना खुर्द निवासी सुबेदार मेजर महिपाल सिंह ने बताया कि गांव के युवाओं में देश सेवा का जज्बा है। वर्ष 1973 में सेना मे भर्ती हुआ था। दिल्ली में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद विदेश में साउथ अफ्रीका के शिरालोन मंद्री सहित देश में अहमदाबाद, अंबाला, हिसार में तैनात रहा। इससे पहले ताऊजी श्योनारायण सिंह भी सेना में सेवाएं दे चुके हैं। वहीं छोटे भाई नंद सिंह, रोहिताश सिंह भी सेना में भर्ती होकर देश-विदेश में सेवाएं दे चुके हैं। वर्ष 2011 में तीसरी पीढी में बड़ा बेटा नवीन सिंह शेखावत सेना भर्ती हुआ था। वर्तमान में हिसार में तैनात है तथा छोटे भाई का बेटा जितेन्द्र सिंह सेना में है।
लुहाकना खुर्द निवासी पूर्व सैनिक रामनारायण ने बताया कि गांव के 80 युवक सेना में भर्ती होकर देश की सेवा कर रहे हैं। हमारी सैनिक टुकडी 3 साल सिकन्दराबाद में तैनात रही। 1987 में श्रीलंका में उग्रवाद के दौरान भारतीय आर्मी को तैनात किया गया। हमारी बटालियन मद्रास पहुंच गई थी, लेकि न सीजफायर हो गया। अब बड़ा बेटा उम्मेद कुमार सैनिक पद पर सिक्खिम में तैनात है। चिट्टी बीते जमाने की बात हो गई। मोबाइल पर बात हो जाती है।