कई कार्यालयों में तो इस अधिनियम के तहत आमजन से आवेदन ही नहीं लिए जाते। यदि जैसे तैसे आवेदन ले भी लेते हैं, तो उन्हें सूचना देने के बजाय बाहर से ही टरका दिया जाता है। या फिर आधी अधूरी सूचनाएं दी जाती है।
सूचना अधिकारी का काम देखने वाले अधिकारी -कर्मचारी आरटीआई आवेदकों से मिलने तक से कतराते हैं। कई कार्यालयों में तो आवेदन देने के लिए भी कई चक् कर काअने पड़ते हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अन्य जिलों में क्या हाल होगा।
14 साल बीते, कहां मिला अधिकार देश में 12 अक्टूबर, 2005 को सूचना अधिकार अधिनियम लागू हुआ था। शुक्रवार को अधिनियम को पूरे 14 साल हो जाएंगे। इस अधिनियम का उददेश्य था कि सरकारी कामकाज में पारदर्शिता आए और प्रत्येक आम नागरिक को उसके क्षेत्र में हो रहे विकास कार्यों की पूरी जानकारी मिल सके।
अधिनियम को १४ साल बीतने के बाद भी अधिनियम की पूरी तरह से पालना नहीं हो रही। कहीं जानकारी के अभाव में तो, कहीं अफसरशाही के चलते आमजन को पूरी तरह से वांछित जानकारी नहीं मिल पा रही।
6 माह में लगाए 8 आवेदन, सभी में टरकाया
शाहपुरा निवासी आरटीआई कार्यकर्ता विजय ताम्बी ने पिछले ६ माह के दौरान नगरपालिका कार्यालय में सूचना अधिकार अधिनियम के तहत ८ आवेदन लगाकर विभिन्न सूचनाएं मांगी। जिसमें से अभी तक एक भी सूचना नहीं मिली।
ताम्बी ने बताया कि उसने कस्बे में लगाई गई रोड लाइटों, कर्मचारियों के संबंध में, पालिका में लगे टैक्सी वाहन के संबंध में और कस्बे में बन रहे कॉम्पलेक्सों के संबंध में 8 आवेदन लगाकर जानकारियां मांगी थी, लेकिन एक भी आवेदन की जानकारी नहीं मिली। जिस पर 5 की अपील करनी पड़ी है।
आवेदन का कोई जवाब नहीं ंनायन निवासी एडवोकेट संदीप कलवानिया ने दो माह पहले जिला परिषद जयपुर में आवेदन कर पंचायतों की ओर से जारी किए जाने वाले पट्टों की प्रकिया की जानकारी मांगी थी। जो अभी तक नहीं मिली।
उन्होंने दो माह पहले ही शिक्षा विभाग में भी आवेदन कर शिक्षकों को किस नियमों के तहत सेवा परिलाभ दिया जाता है, इसकी जानकारी मांगी। वह भी नहीं मिली। इस पर प्रथम अपील की है।
अपील के बाद भी नहीं दी जानकारी इधर, चिमनपुरा पंचायत निवासी गौरीशंकर पलसानिया ने ग्राम पंचायत चिमनपुरा में अधिनियम के तहत आवेदन लगाकर पंचायत में निर्माण कार्यों व प्रधानमंत्री आवास योजना से संबंधित जानकारी मांगी, जो वांछित जानकारी नहीं मिली। उसने प्रथम अपील की तो उसे जवाब मिला कि आपको सूचना दे दी गई है।
नहीं दी वांछित जानकारी शाहपुरा निवासी सुनील कुमार ने सरकारी अस्पताल में 22 जुलाई, 25 जुलाई और 6 अगस्त 2019 को अधिनियम के तहत आवेदन कर विभिन्न सूचनाएं मांगी थी, जिसमें एक भी आवेदन की संतोषप्रद जानकारी नहीं दी गई। सुनील ने बताया कि उसे दो आवेदनों में तो वांछित जानकारी नहीं दी। जबकि तीसरे आवेदन में आधी अधूरी और गुमराह करने वाली जानकारी देकर टरका दिया। इसके बाद उसने सीएमएचओ के यहां प्रथम अपील की तो जवाब मिला के आपको वांछित सूचना चाहने के लिए निर्धारित राशि जमा कराने के लिए बार बार पत्र लिखे गए, लेकिन आपने राशि जमा नहीं कराई।
कैसे पता चले कौन है सूचना अधिकारी अधिनियम के तहत सभी सरकारी कार्यालयों में सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सूचना बोर्ड पर जानकारी लिखवाना आवश्यक है, लेकिन अधिकांश कार्यालयों में अधिनियम की जानकारी तक नहीं है। ऐसे में जानकारी चाहने वालों को पता ही नहीं चल पाता कि कार्यालय में कौन सूचना अधिकारी है और आवेदन कैसे करना है।
अपीलों में बीत जाते हैं कई साल आवेदन तिथि से 30 दिन बाद वांछित सूचना नहीं मिलने पर आवेदक को प्रथम अपील करने करनी पड़ती है। उसमें भी जानकारी नहीं मिलने पर द्वितीय अपील करनी पड़ती है। लेकिन अपील करने के बाद आवेदक को सूचना मिलने में कई साल बीत जाते हैं। वहीं, कार्यालयों के भी कई चक् कर लगाने पड़ते हैं।
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प्रशासन की जनता के प्रति जवाबदेही बनाने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम लागू किया था। लेकिन सरकारी स्तर पर खामियां होने के कारण आज भी आमजन अधिनियम से दूर है। सरकार को इसे और प्रभावी बनाने की दिशा में सुधार करना चाहिए। ताकी विकास के कामकाज में पारदर्शिता आ सके।–
–संदीप कलवानिया, एडवोकेट एवं आरटीआई कार्यकर्ता, नायन, शाहपुरा
–सरकार को इस अधिनियम को अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है। समय पर सूचना मिले इसकी कठोरता से पालना करानी चाहिए। साथ ही लोक सूचना अधिकारियों को प्रशिक्षण देना चाहिए और सरकारी कार्यालयों पर अधिनियम की जानकारी भी लिखी होनी चाहिए। जिससे आमजन गुमराह नहीं हो और समय पर वांछित सूचना प्राप्त कर सके।—
—–एडवोकेट मनीष कुमार शर्मा, आरटीआई कार्यकर्ता