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सिलिकोसिस ने 1 साल में 3 की जान लीली, रोगी जयपुर तक दौड़ लगाने को मजबूर

locationबस्सीPublished: Feb 26, 2020 12:08:23 am

Submitted by:

Surendra

कोटपूतली परिक्षेत्र में 700 से अधिक खाने और 254 क्रशरन्यूमोकानियोसिस बोर्ड से जयपुर में बनता है प्रमाण पत्र

सिलिकोसिस ने 1 साल में 3 की जान लीली, रोगी जयपुर तक दौड़ लगाने को मजबूर

सिलिकोसिस ने 1 साल में 3 की जान लीली, रोगी जयपुर तक दौड़ लगाने को मजबूर

कोटपूतली (दिनेश मारीजावाला). क्षेत्र में स्थित 700 से अधिक खानों में काम कर रहे श्रमिक धीरे-धीरे सिलिकोसिस नामक बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। जयपुर जिले में सबसे अधिक खदानें कोटपूतली में है, लेकिन खनिज विभाग के अधिकारियों की अनदेखी के कारण खान मालिक श्रमिकों को जरूरी संसाधन मुहैया नहीं कराते। इससे श्रमिक सिसिकोसिस की चपेट में आकर मौत के आगोश में जा रहे हैं। क्षेत्र में पिछले 6 माह में 3 रोगियों की मौत हो चुकी है। क्षेत्र में खानों और क्रशर पर करीब हजारों लोग काम करते हैं।
जानकारी के अनुसार इस रोग से पीडि़त क्षेत्र के 46 श्रमिकों को सरकार आर्थिक सहायता दे रही है, लेकिन रोग पाए जाने पर भी 28 के प्रमाण पत्र नहीं बनने से सहायता नहीं मिल रही है। यहां बीडीएम में ऐसे संदिग्ध रोगियों की पहचान के लिए वैन तो उपलब्ध है, लेकिन चिह्नित रोगियों के प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जयपुर ले जाने और स्थानीय स्तर पर शिविर जैसी व्यवस्था नहीं होने से रोगियों के समय पर प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे। इससे सुविधाओं से महरूम है। फिलहाल यह प्रमाण पत्र जयपुर में जिला क्षय रोग अधिकारी की अध्यक्षता में गठित न्यूमोकानियोसिस बोर्ड जारी करता है। इसमें जिला क्षय अधिकारी के अलावा दो अन्य सदस्य होते हैं।
वैन करती है चिह्नित

चिह्नित रोगियों की जांच के लिए बीडीएम अस्पताल में शिविर लगाए जाते हैं। पिछले दो शिविर में एक में 25 व दूसरे में 3 रोगी चिह्नित हुए थे। यहां उपलब्ध वैन खनन क्षेत्र में श्रमिकों की मौके पर जांच कर पीडि़तों को चिह्नित करने का कार्य कर रही है।
रोगी को सांस लेने में होती है परेशानी

खानों व धूल भरे स्थानों पर कार्य करने वाले श्रमिकों के फेफड़ों में धूल व मिट्टी जमा होने से संक्रमण हो जाता है। साथ ही पीडि़त को सांस लेने में परेशानी होती है। इससे मरीज का दम घुटने लगता है। सामाजिक कार्यकर्ता नित्येंद्र मानव ने बताया क्षेत्र में बीमारी से पीडि़त 120 से अधिक संदिग्ध रोगियों की जांच की गई थी। इनमें 49 पीडि़त मिले, जिनमें से तीन की मौत हो चुकी है।
सुरक्षा के मापदंड

रोग से बचाव के लिए खानों व धूल वाले स्थानों पर कार्य करते समय मुंह पर मास्क लगाना जरूरी है, लेकिन खान मालिकों मास्क उपलब्ध नहीं करवाते। धूल से बचाव के लिए पानी का छिड़काव व पौधरोपण होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता है। खान विभाग भी कभार खान मालिकों को नोटिस जारी कर खानीपूर्ति कर लेता है।
आर्थिक सहायता का प्रावधान

नई नीति के अनुसार पीडि़त रोगी को प्रमाण-पत्र जारी होते ही दो लाख रुपए और उसके बाद अलग-अलग चरणों में तीन लाख की सहायता का प्रावधान है। उपचार नि:शुल्क होता है। पीडि़ता की मौत होने पर पत्नी को प्रति माह 3500 रुपए पेंशन, परिवार का पुनर्वास, नाबालिग बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध होगी। ऐसे मरीज जिनको बोर्ड से प्रमाण-पत्र जारी होने के बाद भी तकनीकी कारणों से सहायता सुलभ नहीं हो रही है उनको डीएमएफटी से सहायता देने का प्रावधान है।
प्रमाण-पत्र के लिए रोगियों की जुबानी

केस -1

खड़ब निवासी राजू यादव 20 वर्षों से खानों पर कार्य कर रहा है। अब उसे सीने में दर्द, बुखार व खांसी की शिकायत के अलावा सांस लेने में परेशानी हो रही है। बीडीएम अस्पताल में लगे शिविर में जांच के बाद रोगी चिह्नित होने पर जयपुर रैफर कर दिया, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वह जयपुर नहीं जा सका। पत्नी के अलावा एक पुत्र है। पत्नी को सांस लेने की परेशानी है। सरकारी योजनाओं का भी लाभ नहीं हो रहा है। भामाशाह कार्ड भी चालू नहीं है। कई बार सरपंच के पास भी गए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। उसने बताया उसके थोड़ी दूर पैदल चलने पर ही दम फूलने लगता है।
केस -2
कांसली निवासी मुरारीलाल सैनी कूजोता में खानों पर कार्य करता है। सिलिकोसिस की चपेट में आ गया। 10 साल से लगातार दवाइयां लेने के बावजूद लाभ नहीं हो रहा। शिविर में सिलिकोसिस पीडि़त पाया गया, लेकिन अभी प्रमाण-पत्र नहीं बना। अभी कोई सहायता नहीं मिल रही। कूजोता में खानें बंद होने के बाद उसने हेयर कटिंग का कार्य शुरू कर दिया। इसी से परिवार गुजर-बसर कर रहा है।
ई-मित्र पर पंजीकरण

रोगियों को प्रमाण-पत्र बनवाने के लिए ई-मित्र पर पंजीकरण कराना होता है। पंजीकरण के बाद ई-मित्र संचालक रसीद देगा। इसके आधार पर ही बोर्ड जांच करके प्रमाण-पत्र जारी करेगा।

सिलकोसिस वैन के माध्यम से इस रोग से पीडि़त रोगियों को चिह्नित कर शिविर में जांच की जाती है। जांच में पाए गए सस्पेक्टेड रोगियों को जयपुर रैफर किया जाता है। वहां सिलिकोसिस की पुष्टि होने पर उसी अनुसार उनका उपचार शुरू कर इनके प्रमाण पत्र बनाने की कार्रवाई की जाती है।
डॉ.प्रमोद भदोरिया उप नियंत्रक बीडीएम अस्पताल कोटपूतली

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