चौदह साल बाद भी कागजों में मटर मंडी
झोटवाड़ा पंचायत के श्योसिंहपुरा ग्राम पंचायत स्थित बसेड़ी गांव में 2007 में स्वीकृत मटर मंडी 14 साल बाद भी जमीन पर नहीं उतरी।
13 वर्ष से संचालित, दुकान आवंटन उलझा
नाम टिंडा मंडी, अब बिक रहे मिर्च-टमाटर
शाहपुरा में टिंडे की बम्पर फसल के आधार तेरह साल पहले टिंडा मंडी की स्थापना की थी। कोल्ड स्टोरेज, प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की घोषणा हुई थी। बाद में डार्क जोन में आने व प्रोत्साहन नहीं मिलने से किसानों ने टिंडे से मुंह मोड़ लिया और अब मिर्च, टमाटर ज्यादा नजर आते हैं।
अन्य जिलों में भी हाल खराब
टोंक में करोड़ों की लागत से बनाई गई सोहेला मिर्च मण्डी 12 साल बाद भी शुरू नहीं हो पाई है। 431.56 लाख रुपए की लागत से 25 बीघा जमीन पर वर्ष 2009 में बनी मंडी अब तक शुरू नहीं हो पाई है। नागौर के मेड़ता में वर्ष 2005-06 में जीरा मंडी घोषित हुई। यहां मंडी शुल्क में छूट के साथ जीरा स्टॉक के लिए वेयरहाउस भी बनवाया गया। अब तक यहां 11निजी प्रोसेसिंग यूनिट लगी हैं जबकि यहां 50 प्रोसेसिंग यूनिटों की आवश्यकता है। पुष्कर में फूल मंडी की स्थापना के बाद विशेष कुछ नहीं हुआ।
प्रदेश में विशिष्ट मंडियां
जीरा: मेड़ता सिटी, जोधपुर, बाड़मेर, मिर्च- टोंक, प्याज- अलवर, रसीदपुरा-फतेहपुर , धनिया- रामगंज मंडी,फूल- अजमेर, पुष्कर
अजवाइन: कपासन, टिंडा- शाहपुरा,टमाटर- बस्सी, लहसुन- छीपाबड़ौद- छबड़ा,सोनामुखी- सोजत,मेहंदी- सोजत,ईसबगोल-भीनमाल, अश्वगंधा- झालरापाटन, मूंगफली: बीकानेर, मटर- बसेड़ी, वनउपज-उदयपुर,दलहन- मदनगंज-किशनगढ़, किन्नू-
श्री गंगानगर, अमरूद- सवाईमाधोपुर, संतरा- भवानी मंडी, आंवला- चौमूं।
एक्सपर्ट व्यू
– कमोडिटी के नेचर के अनुसार प्रिजर्वेशन, प्रोसेसिंग व पैकेजिंग की व्यवस्था करना जरूरी है। तभी विशिष्ट मंडी का उद्देश्य पूरा हो सकता है। सभी तरह की कमोडिटी में प्रोसेसिंग के बाद उसका मूल्य और शेल्फ लाइफ दोनों बढ़ जाता है।
– डॉ. शीला खर्कवाल, असिस्टेंट प्रोफेसर, एग्रीकल्चर इकॉनॉमी, एसकेएन कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर
– हाथनोदा में मंडी बंद रहने से आंवला के बगीचे सस्ते दामों पर ठेके पर देने पड़ रहे हैं। सरकार की ओर से आंवले की मार्केटिंग व प्रोसेसिंग सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है।
– कैलाश यादव, किसान, आलीसर