इतिहासकारों के अनुसार राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगंदबिका ने सती के रूप में जन्म लिया था। सती ने भगवान शिव से विवाह किया था। राजा दक्ष इस विवाह से प्रसन्न नहीं थे। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन करवाया था, लेकिन उस यज्ञ में भगवान शिव को नहीं बुलाया गया । जब इसका पता भगवान शिव की पत्नी को चला तो वह यज्ञ में जाने की रट लगा बैठी, भगवान शिव के लाख मना करने पर भी वह नहीं मानी तो भगवान शिव यज्ञ में पहुंच गए, जहां राजा दक्ष भगवान शिव को देखकर क्रोधित हो गए एवं भगवान शिव का अपमान कर दिया।
इस पर सती से भगवान शिव का अपमान सहन नहीं हुआ और उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर प्राणों की आहूती दे दी। इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गए एवं सती के पार्थिव शरीर को यज्ञ कुण्ड से निकाल कर कंधे पर डालकर भूमंडल पर तांडव करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिती पैदा हो गई । इस पर भगवान विष्णु नें सुर्दशन चक्र चलाकर सती के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर एक-एक कर धरती पर गिराते रहे, जहां सती के अंग गिरे, वहां 51 शक्ति पीठों की स्थापना हुई, उनमें से यह 41वाँ शक्ति पीठ है।