विराटनगर और शाहपुरा ब्लॉक में ३० से ३५ फीसदी दुधारु पशु निमोनिया आदि बीमारी की चपेट में है। वहीं ठंड के चलते २५ फीसदी दूध भी कम हो गया है। पशु चिकित्सक पशुओं के खानपान व रहनसहन पर ध्यान देने की पशुपालकों को सलाह दे रहे हैं।
पशुओं में निमोनिया, विंटर डायरिया के अलावा खुराक कम होने की शिकायत आ रही है। पशुपालक बलराम पलसानिया ने बताया कि दुधारू पशुओं में दूध की मात्रा कम हो गई है। बीते चार-पांच दिनों से पशुओं में सुस्ती सी छाई हुई है। इनकी खुराक व दूध कम हो गया है। ठंड से पशुओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। शाहपुरा नोडल प्रभारी डॉ. प्रहलाद सहाय ने बताया कि मौसम बदलने के कारण पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के चलते बीमारियां इन्हें जल्दी ही घेर लेती हैं। (का.सं. )
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सर्दी से पशुओं में इन बीमारियों का प्रकोप
विराटनगर नोडल अधिकारी डॉ. बनवारीलाल यादव ने बताया कि सर्दी व शीतलहर से ३०-३५ फीसदी पशु प्रभावित है। जांच में ज्यादातर पशुओं के शरीर का तापमान सामान्य से २-३ डिग्री कम पाया गया है। जिससे दुधारु पशुओं की उत्पादन क्षमता कम हो गई है। पशुओं में जुकाम, नाक से पानी आना, शरीर में अकडऩ, हल्का बुखार व निमोनिया के लक्षण पाए गए है। जिससे पशु खाना-पीना छोड़ देता है। जिससे पशुओं की सेहत बिगड़ रही है। पशुपालकों को बचाव के उपाय बताए जा रहे है।
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सर्दी से पशुओं में इन बीमारियों का प्रकोप
विराटनगर नोडल अधिकारी डॉ. बनवारीलाल यादव ने बताया कि सर्दी व शीतलहर से ३०-३५ फीसदी पशु प्रभावित है। जांच में ज्यादातर पशुओं के शरीर का तापमान सामान्य से २-३ डिग्री कम पाया गया है। जिससे दुधारु पशुओं की उत्पादन क्षमता कम हो गई है। पशुओं में जुकाम, नाक से पानी आना, शरीर में अकडऩ, हल्का बुखार व निमोनिया के लक्षण पाए गए है। जिससे पशु खाना-पीना छोड़ देता है। जिससे पशुओं की सेहत बिगड़ रही है। पशुपालकों को बचाव के उपाय बताए जा रहे है।
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पशुओं में सर्दी जनित बीमारियों के हैं यह लक्षण-पशु के शरीर के तापमान में लगातार गिरावट आना-सुस्त हो जाना व चलने फिरने में दिक्कत महसूस होना।-चारा खाना बंद करना व जुगाली करना छोड़ देना।
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बचाव के उपाय-सर्दियों के मौसम में पशु बाड़े के दरवाजे और खिड़कियों पर टाट के पर्दे डालें।-फर्श पर गन्ने की पत्ती या घास का बिछावन डालें।-ताजे पानी और हरे चारे के साथ ही हल्का सुपाच्य भोजन दें।-धूप निकलने पर धूप में अवश्य बिठाएं।-पशु के शरीर पर टाट की झालर बनाकर उससे ढकें।-फर्श पर पड़ी बिछावन को दो-तीन दिन के अंतराल में बदलते रहना चाहिए।