महिला दिवस विशेष...रूढ़ीवादी परम्पराओं के बावजूद, शिक्षा से जीवन संवारा
आठ वर्ष की उम्र में बाल विवाह होने के बाद पढ़ाई नहीं छोड़ी फिर आत्मनिर्भर बनते हुए समाज को नई दिशा दी

जयपुर। आज हम उस दौर में हैं जहां रूढ़ीवादी परंपराओं को भूलकर आगे बढऩे की प्रतिस्पर्धा चल रही है। ऐसे में बाल विवाह जैसी अभिशप्त परम्पराओं से उबर कर अपने पैरों पर खड़ा हो समाज को दिशा देने का सार्थक प्रयास फागी निवासी रेखा चौधरी ने किया। आठ वर्ष की उम्र में बाल विवाह होने के बाद पढ़ाई नहीं छोड़ी फिर आत्मनिर्भर बनते हुए समाज को नई दिशा देने के उद्देश्य से शासकीय सेवा शुरू की। आज वे सांगानेर सहायक कृषि निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। रेखा ने बताया कि महिलाओं को सामाजिक कुरीतियों से बाहर निकलकर आगे बढ़ना चाहिए। इसमें समाज के सभी लोगों को आगे आना होगा।
बालिकाओं को शिक्षा के लिए प्रेरित करती हूं
वे बताती है कि 1987 में 8 साल की उम्र में बाल विवाह हो गया था, जब तीसरी कक्षा में थी। इसके बाद 12वीं में पहुंचने पर गोना हुआ और ससुराल आ गई, पढ़ाई निरंतर जारी रखते हुए प्रतियोगी परीक्षाएं देती रही और आज कृषि विभाग सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत हूं। रेखा चौधरी ने 2006 एग्रीकल्चर से एमएसी की। इसके बाद 2010 में नौकरी लग गई। उन्होंने बताया कि बालिकाओं को शिक्षा के लिए प्रेरित करती हूं। कृषि क्षेत्र से जुड़ी महिलाओं को भी प्रोत्साहित कर बाल विवाह जैसी कुप्रथा के बारे में समझा कर जागरूक करती हूं। तीन पुत्र हैं, पति केदार चौधरी व्यवसायी हैं।
संदेश..
— बालिकाओं को उच्च शिक्षा मिले।
— प्रतिभा, शिक्षा के दम पर वे आगे बढ़े।
— ग्रामीण महिलाओं को उत्कृष्ट खेती के लिए प्रेरित करें।
— माता-पिता के साथ अन्य परिजन भी सहयोग करें।
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