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महिला दिवस विशेष: हाथों में हुनर ऐसा की मूर्ति देखकर घूंघट निकाल लेती हैं महिलाएं

Women’s Day Special: Women remove the veil after seeing the statue of skill in their hands महिलाओं के लिए प्ररेणास्रोत, समाज को नई दिशा
रसोई के उपकरण ही कला के औजार

बस्सीMar 08, 2020 / 12:15 am

Surendra

महिला दिवस विशेष: हाथों में हुनर ऐसा की मूर्ति देखकर घूंघट निकाल लेती हैं महिलाएं

अजीतगढ़/शाहपुरा. राजनीति हो या प्रशासन या फिर कला का क्षेत्र। आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपने हुनर का लोहा मनवा रही है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आज हम कला के क्षेत्र में पहचान बनाने वाली एक ऐसी शख्शियत से रूबरू करा रहे हैं, जिसने ने खेल -खेल में मिट्टी के गुड्डे-गुडिया बनाते-बनाते मूर्तिकारी तक जा पहुंचा। ऐसी शख्शियत है अजीतगढ़ कस्बे के पास नांगल गांव निवासी छात्रा मंजू शेखावत। मंजू ने मात्र 23 साल की उम्र में ही कला के क्षेत्र में देश-प्रदेश में अपना नाम कमाया है। क्षेत्र की महिलाओं व छात्राओं के लिए वह प्रेरणास्रोत है। मंजू बिना प्रशिक्षण के मिट्टी की हूबहू मूर्तियां बनाती है। पेंटिंग में बीए करने के बाद मंजू वर्तमान में जयपुर में रहकर बीबीए कर रही है।
जीवंत मूर्तियां देती है संदेश

मूर्तियों में नारी चेतना व ग्रामीण परिवेश को मुख्य रूप से दिखाया है। अपनी मूर्तियों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों पर भी प्रहार किया है। हाल ही में जवाहर कला केन्द्र पर उसके द्वारा बनाई गई चाईल्ड मेमोरीज मूर्ति, हेरीटेज हवामहल आकर्षण का केन्द्र रही। चाइल्ड मेमोरीज में जूते में पैसा व नाव में हवामहल मूर्ति द्वारा गांव से शहर के सफर को दिखाया गया है। धूम्रपान से होने वाले नुकसान को लेकर भी उनकी मूर्ति आकर्षण का केन्द्र रही है। गांव में घर के बाहर चिलम पीते किसान की मूर्ति इतनी जीवंत है कि उसे देखकर ग्रामीण महिलाएं घूंघट निकाल लेती है। गणेश विसर्जन के लिए 11 फिट व 5 क्विंटल वजन की मूर्ति व सबसे छोटी 2 इंच की जूते में पैसा वाली मूर्ति बनाई है।
गांव को दिलाई पहचान

पैतृक गांव नांगल को मंजू की वजह से ही नई पहचान मिली है। मंजू के पिता शम्भूसिंह शेखावत ने बताया कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य मूर्तिकार या चित्रकार नहीं रहा है। बचपन में मिट्टी के गुड्डे-गुडियां बनाकर खेलती थी। धीरे-धीरे वह मूर्तियां गढने में वह माहिर हो गई।
गणेश पूजा में भी मूर्ति

एक सप्ताह तक चलने वाले गणपति उत्सव में उसके द्वारा तैयार की गई मूर्ति सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र होती है। मंजू ने बताया कि उसे मिट्टी की मूर्तियों से इतना लगाव हो गया कि रिश्तेदारों व सहेलियों की शादी में भी खुद के हाथों से तैयार की गई मूर्तियां भी भेंट करती है। मूर्तियां चिकनी काली मिट्टी से बनाने के साथ रसोईघर में काम आने वाले चाकू आदि से ही आकृतियां दे देती है।
ये हैं उपलब्धियां

अब तक ललित कला अकादमी, जवाहर कला केन्द्र सहित अन्य जगहों पर अपनी कला की प्रदर्शनी लगा चुकी मंजू की कला को लोगों ने खूब सराहा है। मंजू दिसम्बर 2019 में अजमेर में गोल्ड मेडल से सम्मानित हुई। 2015 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने वुमन अवार्ड से सम्मानित किया। अभी हाल में जवाहर कला केन्द्र पर 21वें राष्ट्रीय कला मेले में ऑन द स्पॉट डईंग कॉम्पीटिशन में अपनी कला का प्रदर्शन कर कला के कद्रदानों की वाहीवाही बटोरी हैं। कला कुटुम्ब संस्था एवं आर्ट मीनिया फाउंउेशन पुष्कर में तीन दिवसीय कला महोत्सव में अपनी कला का प्रदर्शन किया है। महाराव शेखा संस्थान जयपुर, महाराणा प्रताप संस्थान, अग्रसेन समिति सहित प्रदेश की विभिन्न संस्थाओं सहित करीब 46 स्थानों पर मंजू सम्मानित हो चुकी है। छोटी बहन लक्ष्मी फैशन डिजाइनर है।

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