बतादें कि 30 मई 2018 को कप्तानगंज के विधायक चन्द्रप्रकाश शुक्ल कप्तानगंज ब्लाक के नरायनपुर-मीतासोती मार्ग पर मनोरमा नदी के पिपरौल घाट पर 71 मीटर का पुल का भूमिपूजन कर शिलान्यास किया था। विधायक के शिलान्यास के साथ ही काम तेजी से शुरू हो गया था। जो जुलाई 2019 में बनकर पूरा भी हो गया। नाबार्ड वित्त पोषित आर.आई.डी.एफ. 23 योजनान्तर्गत पिपरौल घाट पर जैसे-जैसे पुल का काम आगे बढ़ा वैसे दर्जनों गांवों के हजारों लोगों के लिए दिन सुखद होने की उम्मीद जगने लगी। हाल ये रहा की काम की गति से लगभग पुल का निर्माण पूरा सा होने लगा।
ये पुल आठ करोड़ 96 लाख रुपये से बन कर तैयार हो गया । जिसका दक्षिण की तरफ अप्रोच भी पूरा हो गया है। मगर उत्तर की तरफ कुछ जमीनी विवाद के चलते नहीं पूरा हो पाया है। इसके कारण ये हुआ कि जिस पुल के चालू होने के बाद आस-पास के सैकड़ों गांव के लोग लाभ लेते उसका कोई फायदा नहीं मिल सका।
ग्रामीणों का आरोप है कि पूर्व लेखपाल गलत पैमाइश कर दूसरे के नाम जमीन दर्ज करा दिए। जिस कारण इसे लेकर विवाद हो गया। पुल के अप्रोच में आने वाली बाधा में मुख्य कारण आसपास की विवादित जमीन बन गई। जिसमें तत्कालिक लेखपाल बीरेंद्र मौर्या पर जिलाधिकारी बस्ती को दिए शिकायती में ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि बिना जरीब व फीता के केवल रस्सी से पैमाइश कर अवैध लोगों के नाम से जमीन अधिग्रहित कर दिए थे और मांग किये थे दोबारा सही ढंग से पैमाइश कराई जाए औऱ उचित लोगों का जमीन अधिग्रहण होकर मुआवजा मिल सके।
वहीं जिला अधिकारी आशुतोष निरंजन ने इस बारे में जानकारी दी कि जल्द ही सेतु निगम द्वारा पैमाइश करा ली जाएगी। रिपोर्ट तैयार होते ही सम्बन्धित विभाग को सौंप दी जाएगी। फरवरी तक इस पूल को आम लोगों की सेवा में शुरू कर दिया जाएगा।
सवाल ये ही कि जिस पांच फीसदी काम न हो पाने से हजारों लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उसे आखिर किस आधार पर रोका गया है। अगर जिलाधिकारी या स्थानीय़ जन प्रतिनिधि इसे लेकर गंभीर हैं फिर जरा सी जमीनी बाधा में पुल का निर्माण नहीं कराया जा सका।