सुभाष उद्यान में स्थित होने से इसको बाग बेरा नाम से जाना जाता है। सालों पहले पानी भरने के लिए आते थे। यहां आने वाले की संख्या भी खासी रहती थी। कुएं से पानी निकालने के लिए बहुत सारी घिड़घिडिया लगी हुई थी। इसके कारण इसको घिड़घिडिय़ां वाला कुआं भी कहा जाता था। अब इस बाग बेरा के आस-पास गंदगी रहती थी। इस कुएं की समय पर सफाई तक नहीं होती है। कुछ लोग यहां पर बैठ कर चर-भर सहित अन्य खेल खेलते हुए जरुर नजर आ जाएंगे।
गणगौर पूजन के दौरान सुहागिने व बालिकाएं बाग बेरा में ही पूजन करने जाती थी। यहां स्थित मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए इस बाग बेरा से ही शुद्ध जल लिया जाता था। बाग बेरा के शुद्ध जल से भगवान का अभिषेक करने के साथ ही भंवर म्हाने खेलण दयो गणगौर…सहित अन्य गीतों की स्वरलहरियां सुनाई देती थी। गीतों की स्वरलहरियां तो आज भी संस्कृति को आगे बढ़ाने के वाहक बनी है। अब सफाई नहीं होने से बाग बेरा के पानी का उपयोग पूजा में कोई नहीं लेता है।