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कचरे से अटा पड़ा है बाग बेरा

locationब्यावरPublished: May 19, 2019 02:38:52 pm

Submitted by:

sunil jain

कचरे से अटा पड़ा है बाग बेराअमृतं जल.म् अभियान : सुभाष उद्यान में दुर्दशा का शिकार

कचरे से अटा पड़ा है बाग बेरा

कचरे से अटा पड़ा है बाग बेरा



ब्यावर. सुभाष उद्यान स्थित बाग बेरा उपेक्षा का शिकार हो रहा है। सालों तक लोगों के पेयजल का स्रोत रहा बेरा अब पूजन सामग्री डालने का स्थल बन गया। बेरा में कचरा नहीं डाल सके।इसके लिए झाली भी लगवाई गई। इसके बावजूद कचरा डालने पर विराम नहीं लग सका। अब भी कचरा डालने का सिलसिला अनवरत जारी है, जबकि एक समय था जब बाग बेरा या घिडघिडय़ा बेरा पौ-फटते ही गीतों की स्वरलहरियां सुनाई देती थी तो कोयल की कंूक से मन प्रफुल्लित हो उठता था। पानी भरने वालों का ताता लगा रहता था। पानी के अन्य जलस्रोत विकसित होने के बाद बाग बेरा की उपेक्षा शुरु हो गई। धीरे-धीरे यह बेरा अनदेखी का शिकार हो गया। परिषद की ओर से गत दिनों इसकी सुध भी ली गई। इसके बावजूद इसमें कचरा डालने का सिलसिला चलता रहा।
घिडघिडी वाला कुआं…
सुभाष उद्यान में स्थित होने से इसको बाग बेरा नाम से जाना जाता है। सालों पहले पानी भरने के लिए आते थे। यहां आने वाले की संख्या भी खासी रहती थी। कुएं से पानी निकालने के लिए बहुत सारी घिड़घिडिया लगी हुई थी। इसके कारण इसको घिड़घिडिय़ां वाला कुआं भी कहा जाता था। अब इस बाग बेरा के आस-पास गंदगी रहती थी। इस कुएं की समय पर सफाई तक नहीं होती है। कुछ लोग यहां पर बैठ कर चर-भर सहित अन्य खेल खेलते हुए जरुर नजर आ जाएंगे।
सालों की परम्परा का साक्षी…
गणगौर पूजन के दौरान सुहागिने व बालिकाएं बाग बेरा में ही पूजन करने जाती थी। यहां स्थित मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए इस बाग बेरा से ही शुद्ध जल लिया जाता था। बाग बेरा के शुद्ध जल से भगवान का अभिषेक करने के साथ ही भंवर म्हाने खेलण दयो गणगौर…सहित अन्य गीतों की स्वरलहरियां सुनाई देती थी। गीतों की स्वरलहरियां तो आज भी संस्कृति को आगे बढ़ाने के वाहक बनी है। अब सफाई नहीं होने से बाग बेरा के पानी का उपयोग पूजा में कोई नहीं लेता है।

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