मेले छूटे पर मन नहीं टूटे, अब शहर-शहर पहुंच रहा हुनर
कोरोना वैश्विक महामारी का असर: इस बार मेले का नहीं हुआ आयोजन, खिलौने बेचने वाले पहुंच रहे एक शहर से दूसरे शहर, मोटरसाइकिल पर ही जुगाड़ से बना दिया आशियाना, स्कू लों की छुट्टियां तो बच्चे भी कर रहे सहयोग

ब्यावर. कोविड वैश्विक महामारी ने जीवन जीने के सलीके में कई नवाचार किए। ऐसे ही जब मेलों का आयोजन बंद हो गए। मेले में खिलौने बेचकर जीवन यापन करने वालों के सामने भी संकट खड़ा हुआ। कुछ समय तो इंतजार किया। कोरोना का संक्रमण काल का समय बढ़ा तो इन्होंने आजिविका के लिए एक शहर से दूसरे शहर की डगर पकड़ ली। इन परिवारों ने जुगाड़ से ही चलता-फिरता आशियाना बना दिया है। इस आशियाने में परिवार को खाने की सामग्री सहित आवश्यकता के सामने के साथ ही खिलौने भी रहते है। अब कोरोना का संकट टलने तक यह एक शहर से दूसरे शहर पहुंचकर खिलौने बेचकर अपना परिवार का गुजर बसर कर रहे है। गंगापुर सिटी क्षेत्र के रहने वाले रामखिलाड़ी ने बताया कि उनके पास पहले खेती की जमीन थी। यह जमीन बंटवारे में कम हो गई। इसके बाद कुछ सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में खर्चा हो गया। ऐसे में उनके परिवार के सदस्यों ने खिलौने बेचने का काम शुरु कर दिया। कई सालों से वों यह काम कर रहे है। वे बच्चों के अलग-अलग प्रकार के खिलौने बेचते है। उन्होंने बताया कि वों मेले होने पर उनमें जाते थे। उनसे उन्हे अच्छी आय हो जाती थी लेकिन अब मेलों का आयोजन नहीं हो रहा है। ऐसे में एक शहर से दूसरे शहर जाकर व्यापार कर रहे है। छठी में पढऩे वाली सपना लिख देती है चावल पर नामरामखिलाड़ी ने बताया कि उसकी एक ही बेटी सपना है। इन दिनों स्कू ले चल नहीं रही है। ऐसे में उसे अकेला घर पर रखने के बजाए साथ ही ले आए। सपना चावल के दाने पर पांच अक्षर तक का नाम लिख लेती है। सपना ने बताया कि उसने कहीं पर जाकर चावल पर नाम लिखना नहीं सीखा। पिता व मां को देखकर इसमें पारगंत हो गई। वापस स्कू लें खुलेगी तो स्कू ल चली जाएगी। जुगाड़ में चलती जिंदगी...
कोरोना वैश्विक महामारी का दौर शुरु हुआ तो मेले के आयोजन पर रोक लग गई। मेले का आयोजन नहीं होने से खिलौने बेचकर अपने जीवन का गुजर-बसर करने वालों के सामने भी परेशानी आई। इस परेशानी का कुछ समय तो सामना किया। बाद में खिलौने बेचकर आजिविका चलाने वाले परिवारों ने मोटरसाइकिल पर ही जुगाड़ से अपना आशियाना बना दिया। इसमें परिवार के लिए खाने-पकाने का सामान के साथ ही बिस्तर की व्यवस्था है। मोटरसाइकिल के साथ ही जुगाड़ से इसको पूरे तिपहिया वाहन का रुप दे दिया है। इसमें परिवार के सदस्य बैठ सकते है। ताकि आवाजाही की परेशानी नहीं होने के साथ ही जहां दिन अस्त हुआ वहीं अपना डेरा जमा देते है।
यह करते है काम
गंगापुर सिटी क्षेत्र से आए अधिकांश परिवार बावरिया जाति के है। इनमें से अधिकांश लोग बच्चों के खिलौने बेचने, छल्ले पर नाम लिखने, चावल के दाने पर नाम लिखने का काम करते है। इसके अलावा फाइबर से निर्मित खिलौने में ट्रेक्टर, ट्रक, बस सहित अन्य खिलोने बेचते है। इससे इनकी आवाजिका चलती है।
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