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इसलिए अटका है लेपर्ड प्रोजेक्ट

locationब्यावरPublished: Aug 06, 2019 06:37:01 pm

Submitted by:

tarun kashyap

नहीं मिली राशि, अब अगले बजट से आस

beawar

इसलिए अटका है लेपर्ड प्रोजेक्ट

ब्यावर. क्षेत्र में पैंथर के मूवमेन्ट को देखते हुए इनके संरक्षण के लिए
ब्यावर में लेपर्ड प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए वन विभाग ने करीब उन्नीस
करोड़ रुपए की प्रस्तावित योजना तैयार कर मुख्यालय भेजी, लेकिन इस बजट
में कोई राशि स्वीकृत नहीं हुई। अब अगले बजट में ही राशि मिलने की उम्मीद
है। झालाना के बाद प्रदेश का दूसरा पैंथर संरक्षण क्षेत्र ब्यावर में
होगा, जिसका वन क्षेत्र झालाना से भी Óयादा होगा।
वन क्षेत्र मेें मिले पैैंथर के शव व आबादी क्षेत्रों में हुए हिंसक
हमलों को देखते हुए वन विभाग ब्यावर में लेपर्ड प्रोजेक्ट शुरू करने के
लिए योजना बनाई। इसके तहत जवाजा, सेलीबेरी, मसूदा, हरराजपुरा सहित
सैंकड़ो किलोमीटर का वन्य क्षेत्र संरक्षित किया। इसके साथ ही वन विभाग
की ओर से नसीराबाद क्षेत्र के भी कई इलाकों को प्रोजेक्ट लेपर्ड में
शामिल करने का निर्णय लिया। जिससे इन क्षेत्र में मौजूद वन्य जीवों को भी
उचित संरक्षण मिल सके। विभाग की ओर से प्रोजेक्ट के तहत विभिन्न योजनाएं
बनाकर वन्य जीवों के संरक्षण को लेकर प्रयास शुरु किए। इसी प्रोजेक्ट के
तहत वन विभाग ने ब्यावर वन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांवो में निवास
कर रहे ग्रामीणों को भी इस प्रोजेक्ट से जोडऩे की योजना बनाई। इसके साथ
ही क्षेत्र में घायल व पकड़े गए वन्य जीवों के बेहतर ईलाज के लिए उन्हे
जयपुर या अजमेर भेजने के बजाय ब्यावर में एक रेस्क्यू सेंटर के लिए स्थान
भी चिह्नित कर लिया गया। वन विभाग के उ’च अधिकारियों ने भी ड्रोन कैमरे
से क्षेत्र का सर्वे कर करीब उन्नीस करोड़ रुपए का प्रस्ताव तैयार कर
मुख्यालय भिजवाया गया। इस बजट में राशि मिलने की उम्मीद थी लेकिन निराशा
ही हाथ लगी। अब अगले बजट से उम्मीद है।
इसलिए बढ़ रहा है संकट
मगरा क्षेत्र पैंथर के लिए अब असुरक्षित जोन बनता जा रहा है। करीब तीन
साल में दस से अधिक पेंथर की मौत के बाद भी प्रशासन नहीं चेता।
टॉडगढ़-रावली से जुड़ी ब्यावर रेंज दस हजार हेक्टर में फैली हुई है। इस
क्षेत्र में खनन सहित अन्य हस्तक्षेप के बाद पेंथर प्रजाति पर संकट मंडरा
रहा है। कुंभलगढ़ अभ्यारण्य से टॉडगढ़-रावली अभ्यारण्य जुड़ा हुआ है।
करीब दौ सौ किमी की इस क्षेत्र में कई वन्य जीव विचरण करते है। रावली
अभ्यारण्य से निकलकर यह पेंथर ब्यावर रेंज में प्रवेश करते ही इनका संकट
शुरू हो जाता है। यहां आते-आते जंगल की चौड़ाई महज चालीस से पचास
किलोमीटर तक रह जाती है। इसके बीच में कई स्थान पर अवैध खनन हो रहा है।
इसके चलते पैंथर सहित अन्य वन्य जीव भटककर आबादी क्षेत्र में आ जाते है।
गत तीन साल से लगातार पैंथर की की मौत ने इनकी सुरक्षा पर सवालियां निशान
खड़े कर दिए है।
संकट में अन्य वन्य जीव भी
मगरा क्षेत्र में खनन तेजी से बढा है। इसमें वैध खनन के अलावा अवैध खनन
भी हो रहा है। इसके चलते वन्य जीवों को आश्रय स्थल छीन जाने से वो भटककर
आबादी के आस-पास आ जाते है। खनन विभाग की ओर से अवैध खनन पर अंकुश लगाने
के लिए पट्टे काटने की तैयारी की लेकिन यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी।
खनन विभाग के सर्वे में सामने आया कि चारागाह की जमीन पर भी अवैध खनन
किया जा रहा है।
बजट मिले तो पकड़े गति
लेपर्ड प्रोजेक्ट के लिए बजट मिलने के बाद वन क्षेत्र के चारों ओर
चारदीवारी, जलाशयों का निर्माण, पौधरोपण सहित अन्य कार्य किए जाएंगे ताकि
वन्य जीवों को बेहतर सुविधा मिल सके। साथ ही एक टास्क फोर्स का गठन करने
की योजना है, जिसमें विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा। प्रोजेक्ट के तहत
ट्रेक्यूलाइजर गन भी मुहैया कराना शामिल है। यहां पर सफाई शुरू करने की
योजना पर भी विचार किया जा रहा है और अगर ऐसा हुआ तो पर्यटन को भी बढ़ावा
मिलेगा।
इनका कहना है…
ब्यावर में लेपर्ड प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए उन्नीस करोड़ की योजना
बनाकर मुख्यालय भेजी। इस बजट में राशि मिलने की उम्मीद थी लेकिन मिली
नहीं। अब अगले बजट से उम्मीद है।
मुलकेश सालवान, क्षेत्रीय वन अधिकारी, ब्यावर
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