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आश्रय स्थल बने इनका ठिकाना

locationब्यावरPublished: Dec 13, 2018 06:41:42 pm

Submitted by:

tarun kashyap

नगरपरिषद के आश्रय स्थल का मामला

नगरपरिषद के आश्रय स्थल का मामला

नगरपरिषद के आश्रय स्थल का मामला

ब्यावर. बेघर व निराश्रित सहित जरूरतमंद लोगों को आश्रय देने के लिए सरकार की ओर से शहरी क्षेत्रमें खोले गए आश्रय स्थलों का ठेका देकर नगरपरिषद प्रशासन ने इतिश्री कर ली है।इन आश्रय स्थलों में कौन रात गुजार रहा है और कितने दिनों से, इस पर भी प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। हालात यह है कि यहां पर ठेकेदार फर्म की ओर से नियुक्त कर्मचरी के परिजन व जान पहचान वाले ही रात गुजार रहे है।इसका अन्दाज यहां मौजूद रजिस्टर में दर्ज नामों को देखकर लगाया जा सकता है।एक ही नाम का बार बार इन्द्राज कर कागजों की पूर्ति की जा रही है। जबकि नगरपरिषद की ओर से ठेकेदार संस्था को हर माह हजारों रुपए मासिक का खर्चा वहन करना पड़ रहा है। शहर के रेलवे स्टेशन रोडव बिजयनगर रोडपर दो आश्रय स्थल संचालित है।इन आश्रय स्थल के संचालन का ठेका ह्यूमन एनीमल नेचर सर्विस सोसायटी (हंस) नागौर को दिया गया है।इसके लिए करीब पिच्चेतर हजार से ज्यादा का भुगतान हर माह किया जा रहा है।
आश्रय स्थल के ऐसे मिले हालात
पत्रिका टीम ने जब बिजयनगर रोडआश्रय स्थल का जायजा लिया तो वहां पर काबरा निवासी मदनलाल नाम का कर्मचारी मिला।उसने बताया कि आने वाली महिलाओं व पुरुषों का अलग अलग रजिस्टर है और हॉल भी अलग अलग है।रजिस्टरों पर नजर डाली तो अधिकांश नामों का बार बार उल्लेख किया गया।पता चला कि छह महिलाएं आश्रय स्थल को सभालने वालेे के परिजन व जान पहचान वाली है। उनके नाम ही बार बार लिखे गए।एक दिसबर को तीन, दो को तीन, तीन को तीन, चार को चार, पांच को तीन, छह को तीन, सात को चार, आठ को चार, नौ को दो, दस को पांच, ग्यारह को पांच, बारह को पांच महिलाओं का ठहरना दिखाया गया।
बात की तो ये हुआ खुलासा
जब कर्मचरी मदनलाल से बात की तो उसने बताया कि उसकी पत्नी आशा व बच्चियां साथ ही रहती है।इसलिए रसोई बना रखी है।नामों के बारे में पूछे जाने पर उसने बताया कि महिलाएं कभी कभार ही आती है और यहां उनके साथ रहने वाली बच्चियों व उनके परिजन के नाम ही लिखे गए है।उसने बताया कि यहां किसी को मनाही नहीं है।कोई भी अपनी आईडी देकर रूक सकता है। उसने बताया कि चोबीस घंटे खुला रखने के लिए उसकी पत्नी और उसे 11 000 रुपए मासिक दिए जाते है। यहां पर महिला पुरुषों के हॉल में अलग अलग बिस्तर के साथ शौचालय व रसोई की व्यवस्था भी है।उसने भी बताया कि कोई सत्तर साल से ज्यादा की उम्र का नहीं आता और ऐसे में खाना तो नहीं बनाया जाता।

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