जो शांत है, वही है संत
रामद्वारा में प्रवचन, संतों ने किया संबोधित
ब्यावर•Jul 19, 2019 / 06:34 pm•
Bhagwat
ब्यावर. कपड़े बदलकर संत बनना सरल है, लेकिन स्वभाव बदल कर संत बनना ही असली साधुता है। जो शांत है, वहीं संत है। रामद्वारा में सबोधित करते हुए संत गोपालराम ने कहा कि मनुष्य जीवन परमात्मा की ओर से मिला हुआ प्रसाद है। इसे शांति से जीना या अशांति से, अवसाद से जीना या आनंद से, यह हम पर निर्भर है। हम काले हैं या गोरे, इसमें न तो हमारी कोई खामी है न कोई खासियत, क्योंकि चेहरे का रंग देना प्रकृति का काम है, पर जीवन को किस तरीके से जीना यह हमारे संकल्प का परिणाम है। जीवन के तीन शत्रु हैं। चिंता, क्रोध और ईष्र्या। चिंता दिल को, क्रोध दिमाग को और ईष्र्या संबंधों को नष्ट कर देती है। जो संत बनकर भी अपने स्वभाव को नहीं सुधार पाया समझो, वह गृहस्थ ही रह गया। जिसने गृहस्थ में भी स्वभाव को शांत बना लिया, समझो उसने संत बनने का सौभाग्य प्राप्त कर लिया। संसार त्याग कर संत बनने में मात्र दो घंटा लगता है, लेकिन क्रोध त्यागकर संत बनने में कई साल भी कम पड़ जाते हैं। संत ने कहा कि गुस्से से तबीयत बिगड़ जाती है, इज्जत खराब हो जाती है, करियर चौपट हो जाता है, नौकरी छूट जाती है, परिवार में दूरियां बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि राहू, केतु, मंगल और शनि की साढ़े साती से भी ज्यादा दुखदायी होता है गुस्सा। संत सेवाराम, संत प्रतीत राम ने भजन सुनाया।
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