आज सुबह अचानक गंगाराम पानी के ऊपर तैरने लगा। जब मछुआरों ने पास जाकर देखा तो गंगाराम की सांसे थम चुकी थी। जिसके बाद पूरे गांव में मुनादी करवाई गई। मगरमच्छ का शव तालाब से बाहर निकाला गया।
अंतिम दर्शन करने दूर-दूर से पहुंच रहे लोगगंगाराम की मौत की खबर सुनते ही दूर-दूर से लोग उसके अंतिम दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया मगरमच्छ को गांव के तालाब में रहते लगभग 175 साल हो गया था। आज तक उसने किसी भी जानवर और इंसान पर हमला नहीं किया था। एक ही तालाब में इंसान और मगरमच्छ के रूप में गंगाराम साथ-साथ रहते थे। बच्चे उसके पास से तैरते हुए निकल जाते थे फिर भी गंगाराम उन पर हमला नहीं करता था। जिसके कारण गांव में उसे देवता की तरह पूजा जाता था।
तालाब से मगरमच्छ का शव निकालने के बाद ग्रामीण बड़ी संख्या में उसे देखने पहुंचे। गंगाराम को छूकर उसका आशीर्वाद लेते हुए दिखे। कुछ महिलाएं गंगाराम के शव को देखकर रो पड़ी। इंसान और जानवर की दोस्ती का यह नायाब, बेजोड़ रिश्ता किताबों में आपने पड़ा होगा पर बाबा मोहतरा गांव के लोग पिछले १७५ साल से इस रिश्ते को निभा रहे थे। गंगाराम के शव को दफनाने के बाद वहां पर स्मारक बनाने का निर्णय ग्रामीणों ने लिया है।