जिले के बेमेतरा, बेरला नवागढ़ विकासखंड में कपास की खेती को लेकर किसानों ने रुचि दिखाई है। जिसके चलते किसान 5 गुना अधिक रकबे में कपास की फसल ले रहे हंै। जिले के जेवरा, कठिया, राका, पथर्रा जीया, मटका झाल, चंदनु, पडरभटठा, नवागढ़, पथरपुजी, सोढ कोहडिया, देवादा और नेवनारा समेत कई गांवों में इस बार किसानों ने इस बार फसल में रुचि दिखाई है।
अनुविभागीय अधिकारी आरके सोलंकी ने बताया कि कपास के लिए जिले में अनुकूल मिट्टी है, जिसके कारण जिले में कपास की खेती करना फायदेमंद है। फसल लेने वाले किसान अनिल हुडडा, राकेश सिंह, धर्मवारी सिंह ने बताया कि कपास का उत्पादन कर रहे हैं। 2 वर्ष का अनुभव बेहतर रहा है, जिसे देखते हुए तीसरे वर्ष भी कदम बढ़ाए है।
बताना होगा कि जिले में 30 दशक पूर्व कपास की खेती की जाती थी। राजनांदगांव में बीएनसी कपड़ा मिल बंद होने के कारण जिले के किसानों ने कपास की खेती बंद कर दी। किसान विजय तिवारी ने बताया कि सोयाबीन का फसल एक बार का उपज देती है। जो करीब 3 माह तक का होता है पर कपास की फसल 8 माह की होती है, जिसमें 3 से 4 बार तोड़ाई की जा सकती है। साथ ही बाजार में 4 से 5 हजार क्विंटल की दर भी मिलती है।
किसान भगवनी वर्मा ने बताया कि कपास को खपाना व बेचना बड़ी समस्या रही है, जिसके कारण किसान पीछे हटे हैं। अब जिन किसानों को सोयाबीन की फसल में नुकसान हुआ है। वे फसल के अनुकूल मिट्टी एवं मौसम की वजह से कपास की फसल लेना शुरू कर चुके हैं। दूसरी तरफ कुम्हारी में कॉटन मिल खोलने की तैयारी है, जिसके कारण जिले का कपास खपाने के लिए बाजार मिल चुका है, जिसके चलते किसान संभावनाओं को देख रहे हैं।
जानकारों ने बताया कि सोयाबीन की फसल की तरह की कपास के लिए काली मिट्टी उपयुक्त होती है। जिले में कपास के लायक मौसम भी अनुकूल रहा है, जिससे तीन वर्ष में रकबा बढ़ा है। जिले में 2016 के दौरान 50 हेक्टेयर, 2017 के दौरान 85 हेक्टेयर व वर्तमान में 252 हेक्टेयर में फसल ली जा रही है। सबसे अधिक खेती बेरला विकासखंड के गांवों में हो रही है। बेमेतरा कृषि उपसंचालक शशांक शिंदे ने बताया कि तीन वर्ष के दौरान जिले में कपास के रकबे में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई है। वर्तमान में 250 हेक्टेयर से अधिक में यह फसल है।