ग्रामीणों ने बताया कि गंगाराम को वे गांव के सदस्य की तरह ही मानते रहे हैं। गंगाराम लोगों से इतना घुला-मिला था कि गांव का बच्चा भी उससे नहीं डरता था। बुजुर्ग बसावन सिन्हा ने बताया कि मगरमच्छ ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया। गंगाराम पर दिल्ली व रायपुर के कई कलाकारों ने डाक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाया है।
बावामोहतरा के पुराने तालाब में 175 साल से रहने वाले मगरमच्छ ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया। तालाब में नहाते समय यदि लोग मगरमच्छ से टकरा भी जाए तो वह स्वयं हट जाता था। मगरमच्छ के इसी सीधेपन की वजह से ग्रामीण उसे प्यार से गंगाराम कहकर पुकारते थे।
ग्रामीणों ने बताया कि तालाब में मछलियां अधिक है, जो गंगाराम का चारा हुआ करता था, लेकिन तालाब से बाहर आकर उसे गोबर खाते हुए भी लोगों ने देखा है। यही नहीं गांव के लोगों ने उसे दाल-भात भी खिलाया है। इसी तरह के कई किस्से गांव वालों की जुबान पर है।
सरपंच मोहन साहू ने कहा कि गंगाराम (मगरमच्छ) गांव की पहचान थे। गंगाराम की वजह से ही लोग बावामोहतरा को मगरमच्छ वाला बावामोहतरा बताते थे। इस गांव से गंगाराम का 175 साल से नाता है। ग्राम ढारा के बीरसिंग दास बंजारे ने बताया कि लोग मगरमच्छ को भगवान की तरह मानते थे।