बेमेतरा

Video: इस गांव के लिए भगवान था गंगाराम पर 175 साल में भी रह गया कुंवारा, जानिए क्यों

बावामोहतरा के पुराने तालाब में 175 साल से रहने वाले मगरमच्छ ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया। तालाब में नहाते समय यदि लोग मगरमच्छ से टकरा भी जाए तो वह स्वयं हट जाता था।

बेमेतराJan 16, 2019 / 03:26 pm

Dakshi Sahu

Video: इस गांव के लिए भगवान था गंगाराम पर 175 साल में भी रह गया कुंवारा, जानिए क्यों

बेमेतरा . जिला मुख्यालय से 7 किमी दूर ग्राम बावामोहतरा में 175 वर्षीय मगरमच्छ गंगाराम की मौत हो जाने पर पूरा 8 जनवरी को पूरा गांव शोक में डूब गया। गांव के हर ग्रामीण की आंख में आंसू नजर आया, क्योंकि मगरमच्छ से सभी की कुछ न कुछ यादें जुड़ी हुई थी। ग्रामीणों को ऐसा लग रहा था मानों कोई जानवर नहीं, कोई अपना उन्हें छोड़कर चला गया हो।
गांव को पहचान दिलाने वाले मगरमच्छ गंगाराम को ग्रामीणों ने आठ जनवरी को सुबह 10 बजे पानी के ऊपर तैरते हुए देखा। जिसके बाद ग्रामीणों ने करीब जाकर देखा तो मगरमच्छ की मौत हो चुकी थी। जिसके बाद मगरमच्छ के अंतिम दर्शन के लिए हजारों ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी। केवल बावामोहतरा ही नहीं ग्राम ढारा, भोईनाभाठा, बहेरा व बेमेतरा समेत अनेक गांव के लोग तालाब पहुंच गए थे।
मगरमच्छ की निकली शव यात्रा
गांव में ट्रैक्टर को सजा-धजा कर मगरमच्छ की शवयात्रा निकाली गई, जिसमें लोगों ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। महिलाओं ने छूकर उनसे आशीर्वाद लिया। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में ही गंगाराम को दफन कर उसका स्मारक बनाकर उसकी याद को जिंदा रखेंगे।
गंगाराम पर बनी है डाक्यूमेंट्री फिल्में
ग्रामीणों ने बताया कि गंगाराम को वे गांव के सदस्य की तरह ही मानते रहे हैं। गंगाराम लोगों से इतना घुला-मिला था कि गांव का बच्चा भी उससे नहीं डरता था। बुजुर्ग बसावन सिन्हा ने बताया कि मगरमच्छ ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया। गंगाराम पर दिल्ली व रायपुर के कई कलाकारों ने डाक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाया है।
मगरमच्छ ने किसी को नहीं पहुंचाया नुकसान
बावामोहतरा के पुराने तालाब में 175 साल से रहने वाले मगरमच्छ ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया। तालाब में नहाते समय यदि लोग मगरमच्छ से टकरा भी जाए तो वह स्वयं हट जाता था। मगरमच्छ के इसी सीधेपन की वजह से ग्रामीण उसे प्यार से गंगाराम कहकर पुकारते थे।
दाल-भात को भी खा लेता था मगरमच्छ
ग्रामीणों ने बताया कि तालाब में मछलियां अधिक है, जो गंगाराम का चारा हुआ करता था, लेकिन तालाब से बाहर आकर उसे गोबर खाते हुए भी लोगों ने देखा है। यही नहीं गांव के लोगों ने उसे दाल-भात भी खिलाया है। इसी तरह के कई किस्से गांव वालों की जुबान पर है।
गंगाराम को भगवान की तरह मानते थे लोग
सरपंच मोहन साहू ने कहा कि गंगाराम (मगरमच्छ) गांव की पहचान थे। गंगाराम की वजह से ही लोग बावामोहतरा को मगरमच्छ वाला बावामोहतरा बताते थे। इस गांव से गंगाराम का 175 साल से नाता है। ग्राम ढारा के बीरसिंग दास बंजारे ने बताया कि लोग मगरमच्छ को भगवान की तरह मानते थे।

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