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25 की उम्र में सांसारिक जीवन छोड़ वैराग्य की राह पर श्रद्धा, दीक्षा से पहले दुल्हन की तरह सजी,खाया मनपसंद खाना

locationबेमेतराPublished: May 03, 2021 01:14:24 pm

Submitted by:

Dakshi Sahu

जैन समाज के रिवाज के मुताबिक श्रद्धा साध्वी बनने से पहले दुल्हन की तरह सजी। जेवर पहनकर हाथों में मेहंदी लगाई। इतना ही नहीं श्रद्धा ने प्री दीक्षा वीडियो-फोटो भी शूट कराया।

25 की उम्र में सांसारिक जीवन छोड़ वैराग्य की राह पर श्रद्धा, दीक्षा से पहले दुल्हन की तरह सजी,खाया मनपसंद खाना

25 की उम्र में सांसारिक जीवन छोड़ वैराग्य की राह पर श्रद्धा, दीक्षा से पहले दुल्हन की तरह सजी,खाया मनपसंद खाना

बेमेतरा/देवकर. बेमेतरा जिले के देवकर के वार्ड-7 निवासी जैन समाज की बेटी श्रद्धा जैन ने सांसारिक मोह त्याग कर मात्र 25 साल की आयु में वैराग्य धारण कर साध्वी बन गई। देवकर जैन समाज में पहली बार 25 साल की एक लड़की ने मोहमाया त्यागकर वैराग्य की राह पर चलते हुए अध्यात्म की राह पकड़ी है। लॉकडाउन के इस दौर में 25 साल की श्रद्धा ने कुछ समय पूर्व ही संसारिक मोहमाया छोड़ दीक्षा लेकर साध्वी बनने का फैसला किया था।
कोरोना प्रोटोकॉल में हुआ दीक्षा संस्कार
रविवार को आचार्य प्रवर 1008 विजदराज जी म.सा. की उपस्थिति में पावन निश्रा के साथ परम् विदुषी प्रभावती जी.म.सा के द्वारा प्रवज्या पदात्री दी गई। दीक्षा लेने के बाद अब श्रद्धा को साध्वी श्रेष्ठता नाम मिला है। देवकर के जैन भवन में श्रद्धा की दीक्षा शुरू हुई। जैन धर्म के शीर्ष मुनियों ने उन्हें दीक्षा दी। इस दौरान लॉकडाउन के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सीमित संख्या में परिजन, व अन्य साध्वियां मौजूद रहीं।
साध्वी बनने से पहले दुल्हन की तरह सजी, कराया फोटोशूट
जैन समाज के रिवाज के मुताबिक श्रद्धा साध्वी बनने से पहले दुल्हन की तरह सजी। जेवर पहनकर हाथों में मेहंदी लगाई। इतना ही नहीं श्रद्धा ने प्री दीक्षा वीडियो-फोटो भी शूट कराया। जिसमें वह पारंपरिक लाल वस्त्र में सफेद मास्क धारण कर अन्य कई तरह की ड्रेस पहने दिखी। फोटोशूट के बाद लाल जोड़ा और जेवर अपनी मां को दे दिया और सफेद वस्त्र धारण कर लिया। इस दौरान उन्होंने अपने बाल भी त्याग दिए।
25 की उम्र में सांसारिक जीवन छोड़ वैराग्य की राह पर श्रद्धा, दीक्षा से पहले दुल्हन की तरह सजी,खाया मनपसंद खाना
सत्य की मार्ग पर चलना चाहती थी इसलिए चुना वैराग्य
सांसरिक जीवन त्यागने से पहले श्रद्धा ने अपना मनपसंद खाना खाया। अपने परिवार के साथ समय बिताया। जिसके बाद श्रद्धा सुराणा अब साध्वी श्रेष्ठता बन गई। दीक्षा के दौरान श्रद्धा ने कहा कि उन्होंने इतनी छोटी उम्र में काफी कुछ सीखा। अब तक अपनी जिंदगी में काफी आनंद लिया। लेकिन कहीं भी शांति नहीं मिली। वह शांति चाहती है, इसके साथ ही संयमित जीवन को अंगीकार कर साधना में लीन हो जाना चाहती है। उन्होंने कहा कि वह अभिभूत है, उनका आत्मविश्वास आसमान छू रहा है। उन्होंने कहा कि मुझे सत्य मार्ग पर चलना है, इसलिए ये सफर बेहद अच्छा लग रहा है।
शिक्षित और संपन्न परिवार से है श्रद्धा का ताल्लुक
मूलत: देवकर में जन्मी श्रद्धा सुराणा नगर की प्रतिष्ठित सुराणा परिवार से ताल्लुक रखती है। उनके पिता पारसमल सुराणा व माता रेशमी बाई सुराणा है। साथ ही घर में दो भाई व एक बहन सहित बड़ा परिवार है। इसके अलावा श्रद्धा बीएससी की प्रथम वर्ष की छात्रा रही है। कई क्षेत्रों में उनकी रुचि रही है, लेकिन उन्होंने सब कुछ छोड़ अध्यात्म को चुन लिया।
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