योजना तैयार कर सबसे पहले स्कूल की शाला विकास समिति की आय से बैग खरीदकर बच्चों को निजी स्कूलों की तरह बैग दिया गया। ग्रामीणों ने बच्चों को जूता, मोजा, टाई व बेल्ट उपलब्ध कराया। इसके अलावा स्टाफ में कार्यरत रसोइया को साड़ी, सफाई कर्मी को शर्ट पेंट दिया गया। इसके बाद ग्रामीणों ने सहयोग करना शुरू कर दिया।
बच्चों ने भी कदम बढ़ाया, स्वच्छता में दिलाई पहचान
सुधार के क्रम में बच्चों के बैग की देखरेख करने की जिम्मेदारी माताओं को दी गई। इसके बाद बच्चों को कपड़े, साफ -सुथरे होने के अलावा बस्ते में बच्चे हाथ धोने के लिए साबुन, पानी की बॉटल व नेपकीन लाने लगे। साथ ही स्लेट, कॉपी, व पुस्तकों को व्यवस्थित रखा जाने लगा।
स्कूल में शिक्षकों ने फंड जमा करने के लिए स्वयं पहल करने लगे और ग्रामीण स्कूल में आकर अन्नदान करने लगे। इसके बाद ग्रामीणों से मिले आनाज को बेचकर करीब 70 हजार की राशि जुटाई गई। जिससे स्कूल में टाइल्स, गमले, अन्य समान खरीदे गए।
स्कूल में आए परिवर्तन को देखते हुए जिला मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान बेहतर झांकी के लिए 2017 में स्कूल को पुरस्कार दिया गया। इसके बाद शिक्षा मंत्री ने स्कूल को प्रदेश स्तर पर उत्कृष्ट होने का पुरस्कार दिया गया।
प्रधान पाठक सेवाराम राकेश ने कहा कि स्कूल की पहचान सामूहिक प्रयासों से बनी है। इसमें बच्चों, पालकों और शिक्षकों की महत्वपूर्ण सहभागिता है। ऐसे ही प्रयास से दीगर स्कूलों की तस्वीर भी बदली जा सकती है। लोगों की सोच भी बदलेगी।