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Story: आजादी की बात करने वाले को जेल में ठूंसकर यातनाएं देते थे अंग्रेज

locationबेतुलPublished: Aug 08, 2022 04:40:53 pm

Submitted by:

Manish Gite

अंग्रेज सिपाही शहर में घूम-घूम कर देखते थे कि कहीं क्रांतिकारी गतिविधियां तो नहीं हो रहीं…>

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बैतूल। मेरी शादी देश आजाद होने के बाद उनसे हुई थी। उन्होंने आजादी के लिए खूब संघर्ष (freedom fighter) किया। आजादी को लेकर जिले और देश में चली गतिविधियों को लेकर अक्सर वह बताते थे। वह बताते थे कि अंग्रेजों का लोगों में बड़ा खौफ था। अंग्रेज सिपाही घोड़े से घूमते थे और पता लगाते थे कि कौन स्वतंत्रता के आंदोलन (freedom movement) में सक्रिय है। और किसी प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधियां कर रहा है। जिस भी व्यक्ति के बारे में उन्हें पता लगता था। उसे उठाकर ले जाते थे। जेल में बंद कर देते थे। जेल में बंद भारतीयों के साथ क्रूरता का व्यवहार करते थे।

 

 

अंग्रेजों के पास एक छोटा डंडा हुआ करता था। इससे मारपीट करते थे। आजादी बहुत ही कठिनाई से मिली है। इसके लिए हमारे जिले के लोगों ने काफी संघर्ष किया है। हमारे जिले के कई लोगों ने आजादी के इस आंदोलन में अपनी जान गवा दी। आजादी की बात करने वाले लोगों को अंग्रेज के अफसर गोली तक मार देते थे। आजादी को लोग खूब छटपटा रहे थे।

 

जिले के प्रभातपट्टन, घोड़ाडोंगरी, बैतूल में सभी आंदोलन सक्रिय रूप से चले। आजादी को लेकर जो भी रणनीति बनाई जाती थी उसे जिले के लोग अपनी जान देकर भी निभाते थे। देश के लिए अपनी जान देने तक से नहीं डरते थे। लोगों में यही जज्बा देखते बनता था। यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी आजादी को लेकर लोगों में जुनून था। इसलिए देश आजाद हो सका। उन्हे भी तीन वर्ष नागपुर के जेल में सजा भी काटनी पड़ी। उन पर डिपो जलाने सहित आजादी के आंदोलन के लिए कार्य करने का आरोप था। शिक्षक होने के बाद भी वे एक सप्ताह में घर आते थे।

घर से बाहर नहीं निकलता था कोई

अंग्रेजों का लोगों में ऐसा डर था कि कोई घर से बाहर नहीं निकलता था। महिलाएं घरों में ही बंद रहती थी। अंग्रेज कभी-कभार दिखाई देते थे। अंग्रेज जब निकलते थे तो घोड़े की टॉप की आवाज आती थी। घर के सामने खंभे पर दिया जलाने आते थे। उस समय क्षेत्र में पूरा वीरान था। चलने के लिए सडक़ तक नहीं थी। कुछ ही ट्रेनें चलती थी, जो कि घर के पास से ही दिखाई देती थी।

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