पारधीकांड में पीएचई मंत्री सुखदेव पांसे को हाईकोर्ट से मिली अग्रिम जमानत
बेतुलPublished: Mar 26, 2019 09:37:43 pm
पारधीढाना आगजनी कांड में डोडल बाई एवं बोन्दरू की मौत के मामले में सीबीआई न्यायालय जबलपुर द्वारा सहअभियुक्त बनाए गए पीएचई मंत्री सुखदेव पांसे को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर ने अग्रिम जमानत दे दी है।
बैतूल। तहसील मुख्यालय मुलताई के समीप चौथिया ग्राम में वर्ष 2007 में हुए पारधीढाना आगजनी कांड में डोडल बाई एवं बोन्दरू की मौत के मामले में सीबीआई न्यायालय जबलपुर द्वारा सहअभियुक्त बनाए गए पीएचई मंत्री सुखदेव पांसे को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर ने अग्रिम जमानत दे दी है।
पीएचई मंत्री सुखदेव पांसे के अधिवक्ता अनिल टवरे और प्रमोद ठाकरे ने बताया कि पांसे के अग्रिम जमानत आवेदन पर सुनवाई करते हुए मध्यप्रदेश जबलपुर उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति व्हीपीएस चौहान ने अधिवक्ताओं के तर्कों को सुनने के उपरांत पांसे को विचारण न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने अथवा गिरफ्तार होने की दशा में 50 हजार रूपये के सक्षम जमानत एवं मुचलके पर छोडऩे का आदेश पारित करते हुए अग्रिम जमानत का लाभ दिया है। उल्लेखनीय है कि सीबीआई द्वारा पारधीढाना मुलताई निवासी डोडलबाई एवं बोन्दरू की मृत्यु की जांच उच्च न्यायालय में दायर याचिका में पारित आदेश करने परिपालन में करते हुए 8 अभियुक्तों के विरूद्ध धारा 302 के तहत प्रकरण पंजीबद्ध कर विशेष न्यायाधीश सीबीआई के समक्ष प्रकरण प्रस्तुत किया था। उक्त मामले में विचारण के दौरान कुछ पारधियों के कथनों के आधार पर फरियादी द्वारा धारा 319 के अंतर्गत सुखदेव पंासे व अन्य व्यक्तियों को सहअभियुक्त बनाए जाने के लिए सीबीआई कोर्ट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया था। फरियादी के आवेदन पर सीबीआई न्यायालय जबलपुर द्वारा 12 सितम्बर 2018 को पारित आदेश में पांसे सहित अन्य को सहअभियुक्त बनाकर न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए सम्मन जारी किया था।
हाईकोर्ट ने दी अग्रिम जमानत
सीबीआई न्यायालय द्वारा कोर्ट में उपस्थित होने के लिए सम्मन जारी करने के बाद गिरफ्तारी की संभावना के चलते पांसे ने उच्च न्यायालय जबलपुर में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था। अग्रिम जमानत आवेदन में पांसे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल टवरे एवं अधिवक्ता प्रमोद ठाकरे ने न्यायालय में तर्क प्रस्तुत किया कि पूर्व में उन्हें आरोपी नहीं बनाया गया था तथा अनुसंधान में उनकी कोई आवश्यकता नहीं है, उन्हें विचारण के दौरान न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर बचाव करना है।