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‘जहरीली’ रोटी खाने से ADJ और बेटे की मौत, इंदौर से मंगाया था आटा

locationबेतुलPublished: Jul 26, 2020 04:05:12 pm

Submitted by:

Shailendra Sharma

बैतूल जिला मुख्यालय के न्यायाधीश महेन्द्र त्रिपाठी और उनके बड़े बेटे की फूड प्वाइजनिंग से मौत हो गई।

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बैतूल. बैतूल जिला मुख्यालय में न्यायाधीश महेन्द्र त्रिपाठी और उनके बड़े बेटे अभियान की फुड प्वाजनिंग से मौत से हड़कंप मच गया है। एडीजे और उनके बेटे की अचानक मौत से हर कोई हैरान है। बताया जा रहा है कि दोनों की मौत फूड प्वाइजिंग के कारण हुई है। बैतूल जिला न्यायालय में पदस्थ एडीजे महेन्द्र कुमार त्रिपाठी कालापाठा स्थित निवास में अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ रहते थे। 20-21 जुलाई की रात को पिता-पुत्र दोनों ने रात में घर में खाना खाया था। घर में कुल 6 चपाती बनी थी। पिता और दोनों बेटों ने 2-2 खाईं जबकि पत्नी ने सिर्फ चावल खाया। भोजन के बाद बाप-बेटों की हालत बिगड़ी। 22 जुलाई को दिनभर उल्टी-दस्त चलते रहे। चूंकि एडीजे त्रिपाठी की पत्नी चिकित्सा की थोड़ी बहुत जानकारी रखती हैं इसलिए उन्होंने दिनभर घर पर ही थोड़ा बहुत इलाज किया। 23 जुलाई की दोपहर को सूचना मिलने पर जिला अस्पताल में पदस्थ डॉ. एके पांडे और डॉ. आनंद मालवीय उन्हें देखने पहुंचे। देखने के बाद जिला अस्पताल में भर्ती करने की बात कही लेकिन न्यायाधीश त्रिपाठी ने एंबुलेंस बुलाकर पाढर अस्पताल जाने को कहा।

हालत बिगड़ने पर नागपुर किया रेफर
पाढ़र अस्पताल में इलाजरत एडीजे महेन्द्र त्रिपाठी और बड़े बेटे अभियान त्रिपाठी की हालत में कुछ सुधार आया। 25 जुलाई की सुबह भी जो लोग उनसे मिले तो उनकी दोनों से अच्छे से बात हुई थी और जल्द ही अस्पताल से छुट्टी की बात भी की। लेकिन 25 जुलाई की ही शाम दोनों की हालत बिगड़ गई और डॉक्टर्स ने उन्हें नागपुर रेफर कर दिया। बताया जा रहा है कि नागपुर ले जाते वक्त बेटे अभियान की रास्ते में ही मौत हो गई जबकि देर रात न्यायाधीश पिता ने भी दम तोड़ दिया। बताया ये भी जा रहा है कि गंज पुलिस ने न्यायाधीश के बयान ले लिए थे जिसमें उन्होंने आटे की जांच की बात कही थी। पुलिस ने आटा जब्त कर घर सील कर दिया है।

इंदौर से मंगाया था आटा
बताया यह भी गया कि आटा शायद इंदौर से आया था और एक सूत्र के अनुसार आटे में किसी के व्दारा कुछ मिलाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि न्यायाधीश त्रिपाठी तो डायबिटीज और बीपी के मरीज थे लेकिन उनका बड़ा बेटा अभियान किसी बॉडी बिल्डर से कम नहीं था, ऐसे में सिर्फ फूड प्वाइजनिंग से उसकी मौत किसी के गले नहीं उतर रही। एक तथ्य यह भी है कि मौत से पहले दोनों करीब ढाई दिन पाढर अस्पताल में उपचाररत रहे। इतने लंबे समय में फूड प्वाइजनिंग सरीखी बीमारी आमतौर पर कंट्रोल में आ जाती है। लेकिन इलाज के बाद भी स्थिति बिगड़ी और पाढर अस्पताल से जाने के कुछ घंटों के अंदर ही बाप-बेटे की मौत हो गई।

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