पढ़ें, आदिवासी परिवार में आधा दर्जन से भी ज्यादा मूक बधिर सांकेतिक भाषा से होते है सारे काम
आदिवासी बाहुल्य गांवों में सरकार की जनहितैषी योजनाएं कैसे फाइलों में कैद होकर रह गई है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण बैतूल विकासखंड की जनपद पंचायत बैतूल के अंतर्गत ताप्ती नदी के किनारे बसे ग्राम पंचायत सावंगा के सिहार गांव में देखने को मिला, जहां ग्राम सरपंच का निवास है।
बेतुल
Published: March 27, 2022 10:07:02 pm
खेड़ीसावलीगढ़। आदिवासी बाहुल्य गांवों में सरकार की जनहितैषी योजनाएं कैसे फाइलों में कैद होकर रह गई है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण बैतूल विकासखंड की जनपद पंचायत बैतूल के अंतर्गत ताप्ती नदी के किनारे बसे ग्राम पंचायत सावंगा के सिहार गांव में देखने को मिला, जहां ग्राम सरपंच का निवास है।बावजूद इसके सिहार के पाढरा भुरु में रामसु उइके के परिवार में मौजूद परिवारिक सदस्यों गुंटू उइके 30 वर्ष, सत्तो बाई, झापु 35 वर्ष दीनू, पंचम, सन्ति उइके, सकिया धन्नू का 6 वर्षीय पुत्र सभी मूक बधिर है।पूरा परिवार आपस में साकेतिक भाषा का उपयोग कर मजदूरी से लेकर सारे काम करते है, लेकिन ग्राम पंचायत ने इतने सालो में कभी भी इन्हें दिव्यांग माने जाने के बाबजूद भी सरकार की दिव्यांग जनों के सहायतार्थ चलाई जा रही पेंशन योजना का लाभ इन्हें नहीं दिलाया जा रहा है। यह मूकबधिर कई बार ग्राम पंचायत से कई बार पेंशन के लिए गुहार लगा चुके है, लेकिन सिस्टम की घोर लापरवाही से एक ही परिवार के गरीब आधा दर्जन से भी अधिक मूक बधिर सरकार की योजनाओ से वंचित है।
विद्यार्थियों ने सीखा पानी और मिट्टी का परीक्षण
-शासकीय महाविद्यालय भैंसदेही में आयोजित हुई कार्यशाला।
फोटो ४३ कैप्शन भैंसदेही।प्रयोगशाला में मिट्टी परीक्षण की जानकारी देते हुए।
भैंसदेही। शासकीय महाविद्यालय भैंसदेही में विश्व बैंक परियोजना के तहत क्वालिटी लर्निंग सेंटर के अंतर्गत अकादमिक उत्कृष्टता गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। इसी कड़ी में प्राणीशास्त्र विभाग द्वारा बीएससी तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों के लिए जल एवं मृदा परीक्षण विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। प्राचार्य जितेंद्र कुमार दवंडे के मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यशाला में प्रशिक्षक के रूप में रूचित एग्रो एंड बायो फर्टिलाइजर बैतूल के प्रवीण माथनकर एवं सुरेंद्र खातरकर उपस्थित रहें। कार्यशाला में जल के विभिन्न गुण जैसे पीएच, आयन सांद्रता घुलनशीलता एवं कंडक्टिविटी आदि के बारे में समझाया गया। तत्पश्चात पीएच मीटर की सहायता से जल के नमूनों का पीएच कैसे मापा जाता है का प्रयोग करके छात्र, छात्राओं को अध्ययन कराया गया। इसके अलावा जल के अन्य गुणों के लिए भी प्रायोगिक विधियों द्वारा प्रयोग कराए गए। कार्यशाला के दूसरे दिन मृदा के विभिन्न प्रकारों, अच्छी एवं खराब मृदा के बारे में समझाया गया। इसके पश्चात विद्यार्थियों से मृदा के नमूने मंगाए गए एवं उनका परीक्षण किया गया। इसके परिणाम स्वरूप मृदा में विभिन्न तत्वों की कमी पाई गई। इन कमियों को कैसे पूरा किया जा सकता है यह भी बताया गया। प्राचार्य जितेंद्र दवंडे ने बताया कि इस प्रकार की कार्यशाला से विद्यार्थियों को प्रकृति और विज्ञान के बीच सामंजस्य समझ में आता है। उन्होंने कहा कि धरती पर प्राकृतिक रूप से प्राप्त कोई भी सम्पदा चाहे वह जल हो या मृदा हो वह कभी भी खराब नहीं होती अपितु उसमें अवांछित तत्व आकर मिल जाते हैं। यदि हम उन तत्वों की जानकारी प्राप्त करें तो उनको शुद्ध किया जा सकता है। कार्यक्रम के संयोजक प्राणी शास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक रविंद्र शाक्यवार रहे, सह संयोजक के इसी विभाग के सहायक प्राध्यापक कालू राम कुशवाह रहे। आयोजन समिति सदस्य के रूप में कृष्णा राठौर अतिथि विद्वान वनस्पति शास्त्र, डॉ हेमेश्वरी डढोरे अतिथि विद्वान रसायन शास्त्र एवं नीलिमा धाकड़ सहायक प्राध्यापक इतिहास रहे।

Tribal family which is not getting the benefit of pension scheme
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