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सारनी में मिला दुर्लभ चमगादड़

locationबेतुलPublished: Jan 16, 2020 05:57:07 pm

Submitted by:

yashwant janoriya

‘टिकल्स बैट’ नाम का है चमगादड़

सारनी में मिला दुर्लभ चमगादड़

“टिकल्स बैट” नाम का है चमगादड़

सारनी/पाथाखेड़ा. दुर्लभ वन्य प्राणियों, पक्षियों, सरीसृपों का मिलना सतपुड़ा की घनी वादियों में बसे सारनी में जारी है। मैनका गांधी के संगठन पीपल फॉर एनिमलस यूनिट सारनी के अध्यक्ष आदिल खान ने पिछले कुछ सालों से लगातार बैतूल जिले में वन्य प्राणियों व प्रकृति के संरक्षण के लिए कार्य किए हैं। आदिल बताते हैं कि कुछ दिन पहले एक रेस्क्यू कॉल आया। जिसमें बताया गया कि मप्र पॉवर जनरेटिंग कंपनी के अस्पताल गार्डन में एक चमगादड़ के बेसुध है। जरूरी वस्तुओं का प्रबंध कर आदिल मौके पर पहुंचे। गार्डन में लगभग छह से सात सेंटीमीटर का एक नन्हा सा चमगादड़ उलटा पड़ा था। फोटो लेकर एहतियात बरतते हुए चमगादड़ का रेस्क्यू किया। चमगादड़ स्वस्थ था पर उड़ नहीं पा रहा था। जीव विशेषज्ञों व पशु चिकित्सकों से संपर्क करने व खोज में पता चला कि यह चमगादड़ दुर्लभ है। बहुत कम ही देखने को मिलती है। अनूपपुर निवासी जैव विविधता विशेषज्ञ संजय पयासी ने बताया इस चमगादड़ का नाम “टिकल्स बैट” है। यह माइक्रोबैट है यानी छोटी प्रजाति का चमगादड़ है। आदिल ने बताया चमगादड़ पक्षी नहीं होते। यह स्तनधारी जीवों में आते हैं। टिकल्स बैट की छोटी-छोटी आंखे होती है और ये इकोलोकेशन की मदद् से छोटे कीड़ों का शिकार करके उन्हें खाता है। यह लगभग 7 सेंटीमीटर के होते हैं। इनकी छोटी सी पूंछ भी होती है जो इनकी त्वचा से जुड़ी रहती है। इनका फर (बाल) बहुत घने और मुलायम होते हैं। टिकल्स बैट गुफाओं, खोखले पेड़ों, जानवरों द्वारा मट्टी में बनाईं गई सुरंगों में रहते हैं। स्वस्थ्य होने केबाद चमगादड़ को जहां से रेस्क्यू किया गया था वहीं पर छोड़ दिया गया।
इनका कहना –
इससे पहले सारनी में एल्बीनो कोबरा, रस्टी इसपोटेड़ केट जैसे दुर्लभ जीव मिले हैं। सारनी सतपुड़ा मेलघाट टाईगर कॉरिडोर पर बसा है। इस वजह से यहां बहुत से दुर्लभ जीव मिलते हैं। इसलिए यहां के वनों का संरक्षण बहुत महत्वपूर्ण है।
आदिल खान, अध्यक्ष, पीपल फोर एनिमलस यूनिट सारनी
जो चमगादड़ मिला है वह टिकल्स बैट है। छोटी प्रजाति का यह चमगादड़ दुर्लभ हैं। सारनी के जंगलों को विशेष रूप से संरक्षित करने की आवश्यकता है। ताकि यहां की जैवविविधता को बचाया जा सके।
संजय पयासी, जैवविविधता विशेषज्ञ, अनूपपुर

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