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Chhat pooja 2018: डूबते सूर्य को अघ्र्य देकर की आराधना

locationबेतुलPublished: Nov 14, 2018 11:53:28 am

Submitted by:

poonam soni

घाट पर पहुंचे सैकड़ों श्रद्धालु, भोजपुरी गीतों की दी गई प्रस्तुति

chhat pooja

डूबते सूर्य को अघ्र्य देकर की आराधना

सारनी. सतपुड़ा डैम के घाट पर मंगलवार शाम हजारों की संख्या में उपासकों ने आस्था और विश्वास के महापर्व पर पूजन किया। उपासकों ने डूबते सूर्य को अघ्र्य देकर उल्लास के साथ छठ पर्व मनाया। वहीं नांदिया घाट, धाराखोह, तेलिया डोह और पाथाखेड़ा के प्राचीन शिव मंदिर में सैकड़ों उपासकों ने सामूहिक रूप से एकत्रित होकर छठपूजा की। उत्तर भारतीयों के लिए यह पर्व दिवाली से कम नहीं है। यही वजह है कि प्राकृतिक सौंदर्य से अच्छादित सतपुड़ा जलाशय के घाट को रंगबिरंगी रोशनी से जगमगा दिया गया था। अलगे दिन अलसुबह पूरे परिवार के साथ उपासक पुन: घाट पर पहुंचेंगे और पानी में खड़े रहकर भगवान सूर्य के उदय होने का इंतजार करेंगे। जैसे ही सूर्योदय की किरणें पानी में पड़ेगी। वैसे ही उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद पूजन कर उपासकों द्वारा व्रत खोला जाएगा। मंगलवार शाम घाट पर हजारों की संख्या में उत्तर भारतीय परिवारों के अलावा नगर के लोग और अतिथियों ने पहुंचकर डूबते सूर्य को अघ्र्य दिया।
कार्तिक व चैत्र में मनाते हैं पर्व- चार दिवसीय छठ पर्व कार्तिक मास के छठे दिन मनाया जाता है। प्रथम दिन व्रती गंगा स्नान करके गंगाजल लाते हैं। द्वितीय दिन उपवास रहकर रात में उपवास तोड़ते हैं। तृतीय दिन व्रत रखकर पूरे दिन पूजन के लिए सामग्री तैयार करते हैं। जिसमें पांच प्रकार के फलों का होना आवश्यक माना जाता है। केले का घौद (कांधी) ठेकुआ, टोकरी में सजाकर बांस के सूप में जलता हुआ दीपक सामने रखकर व्रतधारी नदी, पोखर, तालाब पर बैठते हैं। महिलाएं गीत से छठी मैय्या की महिमा का बखान करती है। शाम को नदी में खड़े रहकर भगवान सूर्य की उपासना करने के पश्चात अघ्र्य देते हैं। चतुर्थ दिन अलसुबह पुन: घाट पर पहुंचकर पानी में खड़े रहकर सूर्योदय की प्रतीक्षा करते हैं। सूर्यदर्शन के साथ अनुष्ठान पूर्ण होता है। इस बीच उपासक निर्जल रहते हैं। यह पर्व साल में दो बार चैत्र और कार्तिक मास में मनाते हैं। छठ पर्व परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता है। कहा जाता है कि जब पांडव अपना राजपाठ, वैभव हार गए थे। तब द्रौपति ने छठ पर्व किया था। इसके बाद उन्हे राजपाठ वापस मिल गया था। छठ पर्व की परंपरा में विज्ञान छुपा है।
भोजपुरी भजनों पर झूमे श्रोता – जबलपुर और परासिया के गायकों द्वारा छठी मैय्या के भजनों की देर शाम तक प्रस्तुति दी गई। देवी जागरण ग्रुप के कलाकारों द्वारा मां काली, भगवान श्रीकृष्ण और भगवान भोलेनाथ की एक से बढ़कर एक झांकी भी प्रस्तुत की। झांकियों का आनंद ले रहे दर्शकों ने मोबाइल में झांकी कैद की। वहीं छठी मैय्या के गीतों से सतपुड़ा का तट गूंज उठा।
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