ग्राम आमाबघोली निवासी उमा राठौड़ ने गांव में बछड़ा और बछिया का विवाह कराया। इसके लिए राठौड़ ने बछड़ा और बछिया खरीदकर लाई। बछड़ा और बछिया की शादी के लिए शादी की सभी रस्में निभाई गई। शादी के लिए दोनों को दूल्हा और दुल्हन की तरह सजा गया था। सुबह के समय मंडा हुआ। इसके बाद अहिर प्रथा के अनुसार कपड़े किए गए। महिलाओं के संगीत कराए गए। गांव में बछड़े की बारात निकाली गई।
ग्रामीण बाराती बने और नाचते-गाते हुए मंडप में पहुंचे। बारातियों का स्वागत हुआ है। शादी लगने के बाद बछड़ा और बछिया का गठजोड़ा बांधा गया और फिर सात फेरे भी हुए। बकायदा यथा शक्ति लोगों ने दहेज भी दिया। इस अनूठी शादी में गांव के लोग और उमा बाई के रिश्तेदार दूर-दूर से शामिल हुए है। गांव में बछड़ा-बछिया की शादी का एक अलग ही नजारा था। वृद्धा ने बताया कि शादी के बाद बछड़ा और बछिया को गौशाला भेज दिया जाएगा।
शादी में गांव के लोगों को भोज दिया गया। सभी को पंगत में बैठाकर भेाजन कराया गया। शादी की तरह ही पकवान सब्जी, पूड़ी, दाल, चावल, जलेबी भी बनाई गई। गांव के लगभग सात-आठ सौ ग्रामीणों ने भोजन किया।
उमा बाई राठौड़ ने बताया कि शादी के कुछ समय बाद ही पति अर्जुन राठौड़ की पेड़ से गिरने से मौत हो गई। उमा बाई की एक भी संतान नहीं थी। पति की सहित अन्य परिजनों की आत्मा शांति के लिए पंडितों ने उमा को गरुड़ पंचाग के अनुसार बछड़ा और बछिया की शादी कराने के लिए कहा। जिसके बाद उमा बाई ने यह निर्णय लिया। बछड़ा और बछिया की शादी रचाने वाले पंडित बिट्टू शर्मा ने बताया कि गरुड़ पंचाग में परिजनों की अकाल मौत होने पर शांति के लिए इस तरह का विवाह कराए जाने का उल्लेख है।