बात भदोही जनपद की करें तो यहां कांग्रेस ने जब भी स्थानीय नेताओं पर दांव लगाया तो उसे इसका फायदा मिला। भदोही लोकसभा का अस्तित्व 2009 में सामने आया इसके पहले यह मिर्जापुर लोकसभा में शामिल था जिसमे भदोही के तीन विधानसभा शामिल थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने जिले के नेता और कालीन निर्यातक सूर्यमणी तिवारी को टिकट देकर मैदान में उतारा तो भले ही पार्टी को जीत हासिल न हुई हो लेकिन यहां कांग्रेस ने अच्छी लड़ाई लडाई लड़ी। कांग्रेस से सूर्यमणी तिवारी को 93 हजार से अधिक वोट मिले जो कुल पड़े वोटों की अपेक्षा 14 फीसदी से अधिक था। वहीं पिछले 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने स्थानीय नेताओं को दरकिनार करते हुए यहां से मिर्जापुर के एहने वाले सरताज इमाम को टिकट दे दिया।
उस चुनाव में स्थानीय प्रत्याशी न होने के कारण कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ और उस चुनाव में पार्टी को सिर्फ 22574 हजार वोट मिले। जो कि कुल पड़े वोटों के मुताबिक दो फीसदी वोट रहा। कुछ यही हाल 2012 के विधानसभा चुनाव में भी रहा जिसमे पार्टी ने जिस सीट से स्थानीय प्रत्याशी लड़ाया वहां वोटर पार्टी से जुड़े लेकिन जहां बाहरी प्रत्यासी को मैदान में उतारा वहां पार्टी का हाल बहुत ही बुरा रहा। 2017 में पार्टी ने सपा से गठबन्धन कर लिया, जिसमे जिले में कांग्रेस के खाते में एक सीट भी न जाने से कार्यकर्ताओं के उत्साह में कमी आयी।
2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से लड़ने वाले सूर्यमणी तिवारी को 93 हजार से अधिक वोट इसलिए मिले की उन्हें पहले बसपा ने अपना लोकसभा प्रत्याशी बनाया था लेकिन एेन वक्त पर उनका टिकट काट दिया गया। टिकट कटने के बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया और पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ गए। क्षेत्र की मतदाता को लगा कि वो चुनाव जीत सकते हैं इसलिए उन्हें अपना वोट भी दिया। ऐसे में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चुनाव में अगर कांग्रेस अकेले मैदान में आती है और स्थानीय स्तर पर मजबूत नेताओं को टिकट देती है तो वह चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है।
By- Mahesh Jaisawal