चार दिनों तक अपनी ऑटो चला पूरे कुनबे को लेकर मुम्बई से भदोही पहुंचे रमेश कुमार यादव महाराजा चेतसिंह जिला अस्पताल में कोरोना की जांच कराने पहुंचे। उन्होंने बताया कि डॉक्टर ने थर्मल स्कैनर से उनकी जांच की। उन्हें कोई बीमारी नही है लेकिन बावजूद इसके उन्हें और उनके परिवार के लिए अस्पताल से बाहर की दवा लिख दी गयी। अस्पताल के बाहर प्राइवेट मेडिकल स्टोर dewपर उन्हें बताया गया कि यह दवा 700 रुपये की आएगी। लेकिन पैसा न होने के कारण उन्होंने दवाएं नही ली और घर जाकर पैसे का इंतजाम करेंगे उनके बाद यहां आकर दवा खरीदेंगे।इस रमेश ने बताया कि वो खुद बेरोजगारी झेल रहे हैं। उसपर इतनी महंगी दवाएं कहाँ से खरीदेंगे।
इसी तरह मुम्बई से ट्रक लेकर आये रामकुमार बिन्द को भी बाहर की दवाएं लिख दी गई। कई और लोगों ने भी बताया कि उन्हें अस्पताल से दवा न देकर बाहर की महंगी दवा लिखी गयी। कोरोना का डर है इसलिए उन लोगों ने दवा खरीदी।
वहीं जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक ने बताया कि बाहर की दवाइयां लिखने पर पूरी तरह प्रतिबंध है। कोरोना की जांच कराने आये लोगों को अगर बुखार-सर्दी है तो उसकी दवा अस्पताल से ही निशुल्क देने का निर्देश है। उन्होंने कहा कि बाहरी दवाइयां लिखने के मामले में वो जांच कराकर कार्यवाई करेंगे। लेकिन इस मामले में बड़ा सवाल यह उठता है कि जब सरकार कोरोना संक्रमितों का पूरी तरह निशुल्क इलाज कर रही है तो विस्थापित कामगारों-श्रमिको की कोरोना जांच के बाद महंगी दवाएं लिखने का अधिकार डॉक्टरों को किसने दे दिया। माना जा रहा है कि इस आपदा में भी डॉक्टर मोटे कमीशन के चक्कर मे बाहरी दवाएं लिख रहे हैं।
By Mahesh Jaiswal