पाली का नील गोदाम एक ऐसा ही स्थल है जो आजादी की गाथा को ताजा कर देता है। यहां अंग्रेज किसानों से जबदस्ती नील की खेती कराते थे और उसे इंग्लैंड भेजते थे। क्रांतिकारी जमींदारों ने इसका विरोध किया तो उन्हें क्रूर तरीके से पेड़ पर फांसी भी दे दी गयी थी। ऐतिहासिक अभिलेखों के मुताबिक अंग्रेजी हुकूमत के दौरान मिर्जापुर का विलियम रिचर्ड म्योर भदोही के पाली सहित आस पास के गोदामो में किसानों से जबरन नील की खेती कराया करता था।
इसके लिए पाली में नील गोदाम, चिमनिया, हौज आदि बनाये गए थे। इसी गोदाम के पास एक आलीशान बंगला भी था। जिसमें म्योर आकर रहा करता। उसने यहां फौज की एक टुकड़ी भी तैनात कर रखी थी। जो किसानों पर अत्याचार और नील की खेती के लिए मजबूर करते थे। नील की खेती से उत्पादन किये गए कच्चे माल को इंग्लैंड भेजा जाता जहां से उससे रंग बनाकर बेचा जाता और दूसरे देशों में भी निर्यात किया जाता था।
नील की खेती से खेतो पर बुरा प्रभाव पड़ने लगा। अन्य किसी फसल की पैदावार न होने से जमींदारों ने नील की खेती के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। अंग्रेजो के शोषण से तंग आकर बाबू उदवन्त सिंग, भोला सिंह और रामबक्श सिंह ने एक सभा बुलाई। सभा में नील की खेती न कर स्वेच्छा से खेती करने का निर्णय लिया गया।
इस क्रांति को दबाने के लिए आंदोलन की अगुवाई कर रहे तीनों क्रांतिकारियों को रिचर्ड म्योर ने पहले सन्धि के बहाने बुलावाया और उन्हें गिरफ्तार कर क्रूर तरीके से गोपीगंज में इमली के पेड़ पर कच्ची फांसी दे दी गई। भाई उदवन्त सिंह सहित अन्य क्रांतिकारियों के हत्या के प्रतिशोध में बाबू झूरी सिंह ने पाली गोदाम से भाग रहे अफसर रिचर्ड म्योर की गर्दन तलवार से कलम कर दी। आज भी पाली में नील गोदाम, फैक्ट्री के खंडहर मौजूद हैं जो आजादी की गाथा को ताज कर देते हैं।
By- महेश जायसवाल