‘सीता समाहित स्थल’ पर बाल्मीकि आश्रम भी है। यहां लवकुश की मूर्ति है। काशी और प्रयाग के मध्य स्थित इस स्थान को सीतामढ़ी भी कहा जाता है। बाल्मीकि रामायण और तुलसीदास की ‘कवितावली’ में सीतामढ़ी का उल्लेख है। यहीं पर भगवती सीता ने अपने दूसरे वनवास के समय जीवन के अन्तिम दिन घोर कष्ट में बिताये थे। और अंत में लांछन लगने पर धरती में समां गई थीं।
‘सीता समाहित स्थल’ पर बाल्मीकि आश्रम भी है। यहां लवकुश की मूर्ति है। काशी और प्रयाग के मध्य स्थित इस स्थान को सीतामढ़ी भी कहा जाता है। बाल्मीकि रामायण और तुलसीदास की ‘कवितावली’ में सीतामढ़ी का उल्लेख है। यहीं पर भगवती सीता ने अपने दूसरे वनवास के समय जीवन के अन्तिम दिन घोर कष्ट में बिताये थे। और अंत में लांछन लगने पर धरती में समां गई थीं।
यहीं माता सीता की केश वाटिका भी है। जहां वह अपनों बालों को साफ किया करती थीं। यहां मौजूद अलग प्रकार की घास माता सीता के बाल के रूप में जानी जाती है। इसकी खासियत यह है कि यह घास सिर्फ इसी स्थान पर होती है।
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108 फीट ऊंची हनुमान जी की प्रतिमा
सीता समाहित स्थल के पास हनुमान जी की 108 फीट ऊंची विशाल मूर्ति है। मान्यता है कि जब श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ किया था तो जिस घोड़े को लव और कुश ने पकड़ा था उसे छुड़ाने आये हनुमान जी को दोनों भाइयों ने यहीं बंदी बनाया था।
मंदिर के पुजारी पंडित सत्यदेव के अनुसार 1997 में पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की पत्नी विमला शर्मा ने इस मंदिर का उद्घाटन किया था। अब योगी आदित्यनाथ सरकार इस स्थल को बड़े पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रही है। इसे रामायण सर्किट से जोड़ा जाएगा।