काफी संघर्ष भरी है यशस्वी की कहानी: यशस्वी जायसवाल भदोही ब्लॉक के सुरियावां के निवासी है। इनके पिता भूपेंद्र जायसवाल सुरियावां बाजार में पेंट की दुकान चलाते हैं। यशस्वी दो बहन और एक भाई में सबसे छोटे हैं। उनके पिता के अनुसार यशस्वी एक सफल क्रिकेटर बनना चाहता था। सोते जागते हमेशा उसके पास बैट जरूर होती थी। एक बार वो यशस्वी को लेकर मुम्बई के आजाद मैदान लेकर गए थे, लेकिन यशस्वी को खाना बनाने नहीं आता था जिससे उसकी एंट्री वहां नही हो सकी जिससे वो निराश होकर वापस लौट आये।
घर की माली हालत ठीक नहीं होने के कारण परिवार यशस्वी के प्रैक्टिस के लिए अन्य जरूरी सुविधाएं देने में सक्षम नही था। इसके बाद जब घर पर यशस्वी को रोटी बनाना आ गया तो वह दोबारा मुम्बई गया, जहां वह चाचा के साथ रहने लगे। उसे अच्छे प्रदर्शन के शर्त पर आजाद मैदान में एंट्री मिल गयी। जहां तीन वर्षों तक यशस्वी ने टेंट में रहकर तमाम मुश्किलों को झेलते हुए अपनी प्रैक्टिस जारी रखा। इस दौरान पैसों की आवश्यकता पड़ने पर उन्हें रामलीला के दौरान गोलगप्पे भी बेचना पड़ा । यशस्वी ने एक मैच में रिकार्ड 319 रन बनाए, जिसके बाद चयनकर्ताओं की उनके ऊपर नजर पड़ी । यशस्वी के खेल से क्रिकेट चयनकर्ता काफी प्रभावित हुए और उनका चयन भारतीय क्रिकेट के अंडर 19 टीम में हो गया और वह भारत ए के लिये सचिन के बेटे के साथ श्रीलंका खेलने भी गये । यशस्वी से पहली मुलाकात में ही सचिन तेंदुलकर ने उन्हें अपना बल्ला भी गिफ्ट में दिया था।
एशिया कप में सबसे ज्यादा रन यशस्वी के नाम एशिया कप में यशस्वी ने शानदार खेल का प्रदर्शन किया और बतौर ओपनर टूर्नामेंट के 3 मैचों में सबसे ज्यादा 214 रन बनाए। फाइनल में उन्हें ‘मैन ऑफ द मैच’ के पुरस्कार से भी नवाजा गया। भारतीय टीम ने फाइनल में श्रीलंका को 144 रन से हराकर रिकॉर्ड छठी बार एशिया कप जीता था।