भरतपुर

गंगा दशहरा से देव गुरु बृहस्पति होंगे वक्री, 120 दिन रहेगा विशेष प्रभाव

-20 जून को रहेगा गंगा दशहरा

भरतपुरJun 17, 2021 / 03:06 pm

Meghshyam Parashar

गंगा दशहरा से देव गुरु बृहस्पति होंगे वक्री, 120 दिन रहेगा विशेष प्रभाव

भरतपुर. गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी 20 जून को है। इस दिन पतित पावनी मां गंगा पर अवतरण हुआ था। धर्म संस्कार और पुण्यफल की प्रतीक मां गंगा के अवतरण दिवस पर देवगुरु बृहस्पति वक्री हो रहे हैं। देवगुरु भी धर्म संस्कार ज्ञान और धर्म के देवता हैं। ज्योतिष शास्त्रों में क्रूर ग्रह माने जाने वाले केतु ने अपना नक्षत्र परिवर्तन दो जून पहले कर लिया है। अध्यात्म, वैराग्य, मोक्ष के कारक केतु ने जेष्ठ नक्षत्र से शनि के अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश कर लिया है। इस नक्षत्र में केतु अगले साल आठ फरवरी तक रहेंगे। केतु ग्रह का नक्षत्र परिवर्तन महामारी निवारण की दृष्टि से शुभ संकेत है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार केतु अपनी वक्री गति से चलते हुए ज्येष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण से निकलकर शनिदेव के अनुराधा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में प्रवेश कर चुके हैं।
पं. मनु मुदगल ने बताया कि गंगा दशहरा से गुरु की उलटी चाल 18 अक्टूबर तक लगभग 120 दिनों की गुरु उलटी चाल को शनिदेव की वक्री चाल का साथ मिलेगा। गुरु स्वयं शनिदेव की राशि कुंभ में विद्यमान हैं। इस प्रकार शनि और गुरु का उलटा गोचर वैश्चिक स्तर पर बड़े भौगोलिक, राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों का संकेत है। गुरुदेव 14 सितंबर 2021 से 20 नवंबर तक मकर राशि में शनिदेव के साथ रहेंगे। यह समय धर्म अध्यात्म त्याग और सेवा भावना को बल देने वाला रहेगा। वैसे तो बृहस्पति सभी के लिए फायदेमंद होता है और ज्यादातर जिन राशियों में यह प्रवेश करता है उन राशियों के जातकों को भविष्य में काफी लाभ मिलता है। लेकिन अब सभी को साथ में जाप करने की जरूरत है। शनि और गुरु की ग्रहचाल से मेष, वृष, मिथुन, तुला, धनु, मकर और कुंभ राशि लाभांवित होंगी। कर्क, कन्या, वृश्चिक और मीन राशि वालों को सतर्कता और संवेदन शीलता के साथ आगे बढऩे के संकेत हैं।
केतु का जिस ग्रह को साथ उसका बढता है बल

केतु ग्रह की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि केतु जिस ग्रह के साथ बैठते हैं उसके बल को बढ़ा देते हैं, यानी शुभ ग्रह के साथ बैठते हैं तो शुभ फल को बढ़ाते हैं और अशुभ ग्रह के साथ बैठते हैं तो अशुभ फल को बढ़ाते हैं। कुंडली में राहु और केतु के कारण पितृदोष का निर्माण होता है। शास्त्रों के अनुसार कुजवत केतु अर्थात नैसर्गिक रूप से केतु मंगल के समान फल देता है। ज्योतिष में राहु-केतु को किसी भी राशि का स्वामित्व नहीं है, लेकिन केतु धनु राशि में उच्च के और मिथुन राशि में नीच के माने जाते हैं। पं. माधवेंद्र शर्मा ने बताया कि केतु के अशुभ असर से बचने के लिए भैरव और हनुमान की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए हनुमान और भैरव चालीसा का पाठ करें। केले के पत्ते पर चावल का भोग लगाएं। हरा रुमाल सदैव अपने साथ रखें। तिल के लड्डू सुहागिनों को खिलाएं। कन्याओं को रविवार के दिन मीठा दही और हलवा खिलाएं।
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