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22 साल पहले पांच किलो आटा लाने के लिए नहीं थे पैसे

locationभरतपुरPublished: Oct 23, 2019 11:22:24 pm

Submitted by:

rohit sharma

मां माधुरी बृज वारिस सेवा सदन अपना घर संस्था के संस्थापक डॉ. बीएम भारद्वाज वैसे तो किसी परिचय के मोहताज नहीं है लेकिन उनकी एक बात किसी के जीवन को बदल सकती हैं।

22 साल पहले पांच किलो आटा लाने के लिए नहीं थे पैसे

22 साल पहले पांच किलो आटा लाने के लिए नहीं थे पैसे

भरतपुर. मां माधुरी बृज वारिस सेवा सदन अपना घर संस्था के संस्थापक डॉ. बीएम भारद्वाज वैसे तो किसी परिचय के मोहताज नहीं है लेकिन उनकी एक बात किसी के जीवन को बदल सकती हैं। वो कहते हैं कि दूसरों की भलाई से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और दूसरों के दिल को ठेस पहुंचाने से बढ़कर कोई पाप नहीं है। जैसे फूल का धर्म है खिलना, कांटे का धर्म है गढऩा, पानी का धर्म है शीतलता और आग का धर्म है जलाना, ठीक वैसे ही इंसान सोचे कि आखिर उसका धर्म क्या है। मंदिर जाना, पूजा-पाठ करना, माला फेरना, सामायिक करना शास्त्रों का धर्म है, पर हम इंसान हैं इसलिए पहले इंसानियत का धर्म अपनाएं। इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। इंसान होकर इंसान के काम आना यही सबसे बड़ा धर्म है। डॉ. भारद्वाज ने बताया कि उनके लिए किसी शो में बड़ी रकम जीतना या नाम कमाना मकसद नहीं था बल्कि अपनाघर आश्रम के माध्यम से सेवा का भाव सभी के दिल में पैदा करना ही सबसे बड़ा मकसद रहा। वे और उनकी पत्नी डॉ. माधुरी भारद्वाज 25 अक्टूबर को रात नौ बजे सोनी चैनल पर कौन बनेगा करोड़पति के शो में नजर आएंगे।

आपका जीवन में मकसद क्या है?


मैं बहुत स्पष्ट कहना चाहता हूं कि तीन ही मकसद है। जो रोड पर हैं उनको स्थान मिले। जिनकी मदद कर रहे हैं, उन्हें हम पर खुद से ज्यादा विश्वास हो। जो मां-बाप, बुआ-फूफा, भाई-बहन, पत्नी आदि को अपना घर में छोड़कर जाते हैं तो एक बार वहां अवलोकन अवश्य करें, ताकि गिरते मानवीय मूल्यों को लेकर वो चिंतित हो सकें। क्योंकि मां-बाप की सेवा तो एक बेटा खुद भी कर सकता है। मैं वृद्धा आश्रम खोलने के पक्ष में कभी नहीं रहा।

भरतपुर समेत 32 आश्रमों का खर्च कैसे चलता है?


ठाकुरजी खुद यह खर्च उठाते हैं। अकेले भरतपुर आश्रम का व्यय प्रतिदिन का साढ़े तीन लाख रुपए व सभी 32 आश्रमों का खर्च आठ लाख रुपए से अधिक होता है। यह सारा खर्च ठाकुरजी को चि_ी लिखकर बताया जाता है। आवश्यकता बताते हैं तो उससे अधिक ही ठाकुरजी भेजते हैं।

इस कार्य में आपका सबसे ज्यादा सहयोग किसने दिया?


मैं और मेरी पत्नी ने संतान नहीं करने का निर्णय किया था। आज आश्रम में रह रहे प्रभुजियों के जितने भी बच्चे हैं उनको साथ ही हम रहते हैं। वो भी तो हमारे ही बच्चे हैं। जितना सुकून उनके साथ रहने से मिलता है वैसा तो दुनियां में कहीं नहीं मिलता है। उनका बचपन मेरी जिंदगी की खुशी है। मेरी सोच है कि समाज का एक वर्ग जो मौत के बहुत करीब होता है तो सिर्फ उसके पास आंसू होते हैं। उनके आंसूओं को पोंछने वाला कोई न कोई हो। वह अपना घर के माध्यम से करना चाहता हूं। इस कार्यमें माधुरी ने हमेशा साथ दिया। अब देशभर से लोग जुड़ते जा रहे हैं।

आपके साथ जरुरतमंदों का व्यवहार कैसा होता है?


जब मैं उनसे मिलता हूं तो लगता है कि साक्षात प्रभुजी से मिल रहा हूं। वो चारों ओर से मुझे घेरकर खड़े हो जाते हैं। भले ही दुनियां उन्हें विमंदित कहे पर मेरी नजर में वो सिर्फ मेरे प्रभुजी हैं।

अभी एक एड्स रोगी ने बेटी को जन्म दिया है?


वैसे तो आश्रम में करीब 40 एड्स रोगी रहते हैं लेकिन जानकर आश्चर्य होगा कि मानवीय मूल्य कितने गिर चुके हैं कि एक विमंदित महिला एड्स रोगी को चार अप्रेल 2019 को यहां भर्ती कराया। उस समय उसे सूरत से सड़क पर पड़ा होने पर लाया गया। वह चार महीने की गर्भवती थी। 23 अक्टूबर 2019 को तड़के उसने बेटी को जन्म दिया। अब बताइये कि क्या यह मानव है। मुझे तो शर्म आती है कि मानव का स्तर कितना गिर चुका है।

आश्रम का इतना बड़ा मैनेजमेंट कैसे चलता है?


अजीमप्रेमजी फाउंडेशन ने हमारी व्यवस्थाओं को देखा था तो वो आश्चर्य में पड़ गए। एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से हम यह तक ध्यान रखते हैं कि किस प्रभुजी ने शरीर की जरुरत के अनुसार आज भोजन किया है या नहीं। किस कंपनी का कौन सा साबुन तक कितने में खरीदा है। एक प्रभुजी की भोजन, दवाई, कपड़ा समेत एक माह का कुल खर्च 2070 रुपए पड़ता है। विश्व में एकमात्र अपनाघर ही एक ऐसा आश्रम है कि जो कि इतने कम खर्च में बेहतर प्रबंधन रखता है। अकेले आश्रम में तीन हजार आवासी भी सिर्फ यहां पर ही हैं। खुद फाउंडेशन ने भी ऐसा बताया था। तीन जुलाई 2011 को अजमेर में आश्रम की स्थापना के बाद प्रत्येक 93 दिन के अंदर अब तक एक आश्रम खुलता रहा है। एक नेपाल में भी संचालित हैं।

केबीसी में जाकर आपको कैसा लगा?


कौन बनेगा करोड़पति के शो में जाने के लिए एक बार तो मना कर दिया था लेकिन उन्होंने सम्मानित नहीं करने की मेरी शर्त को मान लिया। इसके बाद हम तैयार हुए। मेरा मकसद रुपए जीतना नहीं था। सिर्फ और सिर्फ हम अपनाघर आश्रम से देश और समाज क्या दे रहे हैं, यह बताना था। ताकि और भी ऐसा करने के लिए प्रेरित हो सकें।
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