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काम बक्सा मरम्मत का लेकिन मानवता ऐसी कि कमाई का एक हिस्सा बेजुबान जीवों पर करते हैं खर्च

locationभरतपुरPublished: Dec 05, 2020 01:12:16 pm

Submitted by:

Meghshyam Parashar

-सेवर में बक्सा मरम्मत का काम करने वाले सियाराम डांगी की कहानी

काम बक्सा मरम्मत का लेकिन मानवता ऐसी कि कमाई का एक हिस्सा बेजुबान जीवों पर करते हैं खर्च

काम बक्सा मरम्मत का लेकिन मानवता ऐसी कि कमाई का एक हिस्सा बेजुबान जीवों पर करते हैं खर्च

भरतपुर. अपने लिए जिए तो क्या जिए, बन्दर, गाय व मानसिक रोगियों को सामाजिक ढांचे से दरकिनार कर उन्हें कैद करने वाले तो बहुत मिलते हैं लेकिन सियाराम डांगी सरीखे लोग नहीं मिलते। अपने लिए तो सभी जिया करते हैं पर कुछ लोग ऐसे हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं। इस कथन को अगर हकीकत में देखना है तो सेवर आर्मी गेट के समीप छोटी सी ताले बक्सा मरमत की दुकान के सियाराम डांगी इसकी मिसाल हैं।
वे दूसरों के लिए जीते हैं, वे बंदर, गाय व मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्तियों की सेवा करते हैं। जिन्हें लोग पागल कह कर दुत्कार देते हैं। पेशे से सियाराम ताले बक्सा के मिस्त्री है और बंदरों, गाय व ऐसे व्यक्तियों की महज देखभाल ही नहीं करते, वे उन्हें खुद के खर्चे पर चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध कराने का काम व उनको सुबह का भोजन कराना पिछले 20 वर्षों से कर रहे हैं। मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के प्रति उनके लगाव को देख कर आसपास के सभी लोग उन्हें पागलों का बाबा भी कहते हैं। आज उन के प्रयासों के कारण आठ से ज्यादा ऐसे लोग सही हो कर सामान्य जीवन जी रहे हैं। वे बिना किसी के सहयोग से सड़क पर घूमते विक्षिप्तों व अशक्तजनों को कपड़े पहनाना, ठंड में कंबल या शॉल बांटना, खाना खिलाना, बाल बनवाना, नहलाना धुलाना आदि अपने खर्चे पर करते आ रहे हैं।
खुद सियाराम दिन भर महनत करके 300 से 400 रुपए कमाते है और उसमे से 40-45 प्रतिशत बेजुबान बन्दर, गाय मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के ऊपर खर्च कर देते है और सियाराम सिकलीगर के दो पुत्र है। उनको भी यही शिक्षा देते है कि जिनका कोई नहीं है उनकी सेवा करना है वो ही इस धर्म में सर्वोपरि है। उनका बड़ा बेटा संजय डांगी वो सेवर के सभी समाज वर्गों के बच्चों को शिक्षा की ओर अग्रसर कर रहे है। उनका कहना है कि सभी पैसे वाले भाई गरीब तबका के बच्चों को भीख नहीं शिक्षा दें। इससे वो जीवनभर अपने परिवार का जीवन यापन कर सकें। सियाराम कहना है कि वह किसी से एक पैसा नहीं लेते जिसे श्रद्धा होती है वह बंदरो को केला, चना, सब्जियां खिलाने के लिए थोड़ा अंशदान करके पुण्य कमा सकते है।
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