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निर्बन्ध : पाप का मूल्य

locationभरतपुरPublished: Jul 26, 2016 03:13:00 am

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लक्ष्मी की चंचलता को स्वीकार क्यों नहीं किया उन्होंने। क्षत्रिय उसे तलवार से प्राप्त करके भोगता है। पृथ्वी का राज्य वीरों द्वारा ही भोगा जाता है।

लक्ष्मी की चंचलता को स्वीकार क्यों नहीं किया उन्होंने। क्षत्रिय उसे तलवार से प्राप्त करके भोगता है। पृथ्वी का राज्य वीरों द्वारा ही भोगा जाता है। ‘खड्गेनाक्रम्य भुंजकीत वीरभोग्या वसुंधरा।।’ पर वह क्षत्रिय, दुर्योधन के समान प्रतिदिन अपने भाइयों और बेटों को युद्धभूमि में कटवाता है। द्रोण के समान नहीं कि पुत्र के मारे जाने का समाचार पाकर हाथ से शस्त्र छूटकर गिर जाता है। इरावान को मरते देखा था अर्जुन ने। 
अभिमन्यु का भी वध हुआ। उससे अर्जुन का गांडीव नहीं छूटा। वह और भी प्रचंड होकर लडऩे आया और उसने जयद्रथ का वध किया। नहीं द्रोण! तुम उस क्षत्रिय जीवन के उपयुक्त नहीं। व्यर्थ का लोभ किया। व्यर्थ का अहंकार किया। वे इस प्रकार के जीवन के योग्य नहीं हैं। उनका ब्रह्म ‘मोक्षÓ है। वे मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं। तो फिर उन्होंने अपनी आजीविका रणभूमि में क्यों चुनी? 
यह आजीविका उनके लिए है, जो उसके माध्यम से धर्म की स्थापना कर सकते हैं। भूल हुई द्रोण! तुमसे भूल हुई। तुम्हें अपने मार्ग पर ही चलना चाहिए था। तो अब ही क्या बिगड़ा है? अश्वत्थामा की मृत्यु ने उनके अज्ञान को छिन्न-भिन्न कर दिया है। कदाचित् उनकी आंखें खोलने के लिए ही अश्वत्थामा को यह बलिदान देना पड़ा है। धृष्टद्युम्न का रथ उनके सम्मुख खड़ा था। वे उसे अनुमति नहीं दे सकते थे कि वह युद्धभूमि में उनका वध कर सारे क्षत्रिय समाज में द्रोणहंता के रूप में गौरवान्वित हो। 
उससे युद्ध करेंगे वे… उन्होंने धनुष पर बाण चढ़ाया और बाण वर्षा आरंभ कर दी। पर उनका मन वहां नहीं था। अब युद्ध उनके लिए तनिक भी महत्वपूर्ण नहीं रह गया था। आसपास का सारा परिवेश न केवल धूमिल हो गया था, वह कहीं अदृश्य-सा भी हो गया था। वे तो जैसे किसी निभृत एकांत में खड़े ईश्वर से पूछ रहे थे… पाप उन्होंने किया था। अधर्म उन्होंने किया था। तो फिर उसका मूल्य अश्वत्थामा को क्यों चुकाना पड़ा? 
उसे क्यों पूर्णायु प्राप्त नहीं हुई? क्या ईश्वर का विधान एक के कर्म का दंड दूसरे को दे सकता है? क्या नियति की आंधी नेत्र मूंदकर चलती है? या वे मान लें कि अश्वत्थामा भी उनके ही समान पापी था और उसने अपने कर्मों का फल पाया था? उसने अपने प्राण खोए थे और द्रोण ने अपना एकमात्र युवा पुत्र खोया था। दोनों को दुख मिला, तो क्या वे पिता पुत्र दोनों ही पूर्व जन्म के पापी थे? सहसा उनके मन ने उन्हें डांटा, इसमें कर्मों का फल क्या है? जो युद्धक्षेत्र में खड़ा है, उसका प्रबल शत्रु किसी भी क्षण उसे मारकर गिरा सकता है। 
नरेंद्र कोहली के प्रसिद्ध उपन्यास से 

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