करीब 20 लाख है खर्चा
ईंट भट्टे के नए जिकजैक सिस्टम थोड़ा महंगा है। इस पर करीब 15 से 20 लाख रुपए खर्चा आएगा। इस सिस्टम में भट्टे में केवल कोयला के जरिए ही ईंटों को पकाया जा सकता है। इसमें वर्तमान में चल रहे भट्टों की तरह तूड़ी का इस्तमाल नहीं किया जा सकेगा। इससे प्रदूषण कम होगा। नए सिस्टम में अलग-अलग ब्लॉकों में कोयला डाला जाता है और अन्दर गर्म हवा ईंटों को पकाती है। इस सिस्टम में ईंट ‘ए’ ग्रेड गुणवत्ता की तैयार होती हैं। जिले में जिकजैक सिस्टम से ईंट भट्टों का निर्माण के लिए करीब 25 संचालक निर्माण करने वाले ठेकेदार को ऑर्डर दे चुके हैं। साथ ही अभी चल रहे सिस्टम से 20 फीसदी कोयला कम लगता है।
जिले में 112 ईंट भट्टे
राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के अनुसार जिले में करीब 110-112 ईंट भट्टे संचालित हैं। यह भट्टे हलैना, नदबई, वैर और पहाड़ी इलाके में हैं। यहां चल रहा पुराना सिस्टम इस जून से समाप्त हो चुका है। नए सिस्टम से ईंट पकना अक्टूबर महीने से शुरू हो जाएगी। इससे पहले संचालक भट्टे में फंसी पुरानी ईंट निकालने में जुटे हुए हैं।
जता रहे नुकसान की आशंका
नए सीजन से जिकजैक सिस्टम लागू होने पर ईंट भट्टा संचालक धंधे में नुकसान की भी आशंका जता रहे हैं। उनका कहना है कि तूड़ी के मुकाबले कोयला महंगा पड़ेगा, जिससे ईंट के भाव भी महंगे होंगे। इससे एनसीआर के बाहरी इलाकों से सस्ती ईंट आने से उन्हें नुकसान पहुंचेगा। जिले से सटे आगरा, धौलपुर, करौली व दौसा जिले के ईंट भट्टों से उनकी प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ जाएगी। इसके चलते संचालक अतिरिक्त छूट की मांग कर रहे हैं।