संभाग मुख्यालय पर जनाना अस्पताल में वर्ष 2009 से कुपोषण उपचार केंद्र शुरू किया गया। यहां भर्ती बच्चों के उपचार के लिए सरकार ने जांच, दवाई, पोषाहार आदि की व्यवस्था कर रखी है। जहां प्रतिवर्ष लगभग 140 बच्चों को उपचार दिया। लेकिन, जागरुकता के अभाव में 20 फीसदी परिजन अपने बच्चों को किसी न किसी बहाने से अधूरे उपचार के बीच ले गए। ऐसे में बच्चों का कुपोषण से मुक्त होना मुश्किल है।
कुपोषण 0 से 5 वर्ष के बच्चों में होता है। ऐसे में जनाना अस्पताल में केंद्र पर वर्ष 2018 में जनवरी से दिसम्बर तक 151 बच्चे भर्ती हुए। इनमें 53 लड़का और 98 लड़कियां थीं। वहीं वर्ष 2019 में अब तक 131 बच्चे भर्ती हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि मां के गर्भ से कुपोषण शुरू होता है। इसका कारण मां को पौष्टिक खाना नहीं मिलना है। इससे बच्चे का शारीरिक विकास नहीं होता और मानसिक रोग से भी ग्रसित हो जाते हैं।
केंद्र पर भर्ती बच्चे को पूरा उपचार दिया जाता है। भर्ती होने के बाद जब तक उसके वजन और शरीर में 15 फीसदी विकास नहीं होता तब तक छुट्टी नहीं देते। लेकिन, 20 फीसदी लोग बहाना बनाकर ले जाते हैं। इससे निपटा नहीं सकता।
वहीं आंगनबाड़ी केंद्रों पर कार्यरत आशा सहयोगिनी व कार्यकर्ता भी अपने क्षेत्रों में कुपोषित बच्चों को लेकर अस्पताल नहीं आती हैं। जबकि, यह उनकी जिम्मेदारी बताई गई है। कुपोषण उपचार केंद्र जनाना अस्पताल प्रभारी उत्तमचंद शर्मा का कहना है कि कुपोषित बच्चों के उपचार की व्यवस्था है, लेकिन कुछ लोग जागरुकता के अभाव में उपचार के बीच में बच्चे को ले जाते हैं। ऐसी स्थिति पर नियंत्रण करना मुश्किल है।