यह है मान्यता मान्यता हे कि मां पार्वती होली के दूसरे दिन अपने पीहर जाती हैं और आठ दिन बाद भगवान शिव उन्हें वापस लेने जाते हैं। इसलिए गणगौर का त्योहार होली की प्रतिपदा से आरंभ होता है। इस दिन सुहागिन महिला एवं कुंवारी कन्या मिट्टी के शिव को गण एवं माता पार्वती को गौर बनाकर उनका पूजन करती हैं। इसके बाद चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर की विदाई की जाती है। इस गणगौर तीज भी कहा जाता है। यह पर्व नवविवाहिताओं के लिए खास होता है। चैत्र शुक्ल द्वितीया को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर पूजी हुई गणगौर को पानी पिलाया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को शाम को गणगौर का विसर्जन किा जाता है। गणगौर तीज पर सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु और अविवाहित युवतियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं।
पहले पूजन, फिर निकाली गणगौर की सवारी अन्र्तराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन की महिला इकाई ने स्थानीय सनातन धर्म सभा विश्राम गृह में गणगौर पूजन कार्यक्रम किया। महामंत्री शोभा कंसल ने बताया कि गणगौर पूजन का विधिवत पूजन कार्यक्रम श्रीसनातन धर्म विश्राम गृह में गणमान्य नागरिकों एवं महिला इकाई अध्यक्षा सीमा मंगल की ओर से शाम चार बजे किया गया। इसमें महिला इकाई की 32 महिलाएं मौजूद रहीं। विधिवत पूजन उपरांत सभी ने गणगौर की सवारी में शामिल होकर सभी शहरवासियेां को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश दिया। इस कार्यक्रम में सरोज लोहिया, नीतू गर्ग, सुदेश गुप्ता, शशि सिंघल, अंजना बंसल आदि महिलाओं की विशेष भागीदारी रही। कार्यक्रम उपरांत महिला इकाई ने सभी को प्रसाद वितरण किया।