यही वजह है कि मेला में दोपहर से रात तक लोगों की भीड़ सहारनपुर का फर्नीचर, भरतपुर में मिट्टी के बने टैराकोटा, टांक के नमदा आदि की खरीदारी के लिए आ रहे हैं। यह पहली बारआए हैं।
मेला में आने का रुझान इसलिए भी बढ़ा है कि राज्य सरकार हस्तशिल्पियों को बाजार सहायता योजना के तहत पुनर्भरण के 4000 रुपए, मेला में आने का स्वयं का किराया व प्रतिदिन के हिसाब से 350 रुपए भी देती है। वहीं राज्य के बाहर से आए प्रति हस्तशिल्पी को पुनर्भरण के साथ 450 रुपए प्रतिदिन देती है।
सरकार का उद्देश्य इनके बनाए सामान को बाजार उपलब्ध कराना है। इसके लिए हस्तशिल्पियों को मेला के बाद अपने जिले से संबंधित जिला उद्योग केंद्र में आवेदन करना होता है। विभाग में बजट आते ही राशि उपलब्ध कराई जाती है। इसलिए हस्तशिल्पियों को बिक्री होने के अलावा सरकारी सहायता मिलती है।
वैसे तो मेला में प्रतिवर्ष अचार-मुरब्बा, किचन वेयर, कश्मीरी शॉल, रजाई गद्दे, क्रॉकरी आदि बिक्री के लिए लाए जाते हैं। इस बार टैराकोटा, सहारनपुर का फर्नीचर पहली बार लगाए गए हैं। वहीं मेला में इस वर्ष दुकानदारों की संख्या भी बढ़ी है। इससे विभाग को पिछले वर्ष की तुलना में अब करीब तीन लाख रुपए का राजस्व मिला है।