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एनसीआर की मार : खोखला हो रहा खुशियों का खजाना

locationभरतपुरPublished: Oct 07, 2022 05:18:26 pm

Submitted by:

Meghshyam Parashar

– पटाखा कारोबारियों की दिवाली भी बेनूर

एनसीआर की मार : खोखला हो रहा खुशियों का खजाना

एनसीआर की मार : खोखला हो रहा खुशियों का खजाना

भरतपुर . राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) ने भरतपुर को कोई यादगार सौगात तो नहीं दी है, लेकिन दिवाली पर अनार की झिलझिल से रोशन होने वाले आंगनों को बेनूर कर दिया है। पटाखों का शोर भी यहां गुजरे जमाने की बात हो चली है। शहर में कभी चार फैक्ट्रियों में सैकड़ों मजदूर काम करते थे, लेकिन पहले कोरोना ने इस व्यापार का कबाड़ा किया और अब एनसीआर की बंदिशें इसे रसातल में ले गई। वजह, दो कारखाने बंद हो गए। अन्य दो पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
पटाखा कारोबारियों की दिवाली को रंगीन करने वाले आतिशबाजी व्यवसायियों का बंदिशों ने ‘दिवालाÓ सा निकाल दिया है। एनसीआर में शामिल होने के बाद भरतपुर में इस व्यवसाय को ग्रहण लग गया है। अब हर वर्ष यह कारोबार सिमटता नजर आ रहा है। भरतपुर की बात करें तो यहां आतिशबाजी का व्यापार 4 से 5 करोड़ था, लेकिन पिछले चार साल से कई फैक्ट्रियों के ताले तक नहीं खुल सके हैं। एनसीआर से पहले होली के त्योहार के बाद चटक धूप खिलते ही इन फैक्ट्रियों में खुशियों का कारोबार शुरू हो जाता था, जो दिवाली तक चलता था, लेकिन अब यहां सिर्फ सन्नाटा नजर आता है। तमाम बंदिशों के बीच अब खुशियों के इस कारोबार में मायूसी छा रही है।
आदेश की आड़ में छीन ली खुशियां

पटाखा कारोबार से जुड़े व्यवसायी बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई थी, जो अत्यधिक प्रदूषण फैलाते हैं। मुख्य रूप से बेरियम नाइट्रेट से तैयार होने वाले पटाखे चलाने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई, जबकि भरतपुर में पहले से ही ग्रीन पटाखों का निर्माण होता है। आसमान में जाकर रंग-बिरंगी आतिशबाजी करने वाले पटाखे बेरियम नाइट्रेट से तैयार होते हैं, जो यहां नहीं बनते हैं। व्यापारी बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों के निर्माण और बिक्री पर रोक नहीं लगाई है, जबकि राज्य सरकार ने यहां सब कुछ ही बैन कर दिया है। ऐसे में पटाखा कारोबार यहां पूरी तरह से ठप सा हो गया है। व्यापारी कहते हैं कि दिल्ली में अत्यधिक प्रदूषण की वजह से मुख्यमंत्री ने केवल दिल्ली में पटाखा बिक्री पर रोक लगाई, जबकि राजस्थान में कोरोना की आड़ में सब कुछ बंद कर दिया। अब तक इस पर निर्णय नहीं होने से कारोबार ठप सा हो गया है।
पहले सड़ गया कच्चा माल, इस बार मंगाया ही नहीं

कोरोना से पहले भी एनसीआर की बंदिशें थीं, लेकिन यहां ग्रीन पटाखे बनाकर बाहर भेजे जा रहे थे। अकेले भरतपुर की बात करें तो यहां आतिशबाजी का कारोबार चार से पांच करोड़ रुपए था, जो अब सिमटकर आधा रह गया है। पहले व्यापारियों ने ग्रीन पटाखा निर्माण के लिए कच्चा माल बाहर से मंगवा लिया था, लेकिन कोरोना की पाबंदी के चलते सब कुछ बंद कर दिया। ऐसे में पहले कच्चा माल फैक्ट्रियों में ही सड़ गया। इनमें सूंतली, गत्ता, एल्म्युनियम पाउडर एवं कैमिकल आदि था। सरकार ने कोरोना के दौरान सब कुछ बंद कर दिया। अब तक राज्य सरकार ने इस कारोबार को लेकर तस्वीर साफ नहीं की है। ऐसे में व्यापारियों ने यहां माल ही नहीं मंगाया है। ऐसे में इस बार यह कारोबार कतई ठप रहा है। हालांकि शहर में आतिशबाजी के नाम पर थोड़ी बहुत फुलझड़ी वगैरह निर्माण का काम हुआ है।
पिछले साल ऐन वक्त पर दी राहत

व्यापारी बताते हैं कि पिछले साल राज्य सरकार ने ऐन वक्त पर इस उद्योग को राहत दी थी। इसमें फैक्ट्रियों में पटाखों का निर्माण कर बाहर भेजने की छूट दी थी, लेकिन इससे बात नहीं बन सकी। व्यापारी कहते हैं कि भरतपुर में इस कारोबार का आधार स्थानीय लोग हैं। यदि यहां के लोगों को पहले से ही पटाखे बेचने के लाइसेंस दिए जाएं तो इस कारोबार को पंख लग सकते हैं। व्यापारी कहते हैं कि केन्द्र सरकार ने भरतपुर को एनसीआर से हटाने के आदेश जारी कर दिए हैं, लेकिन राज्य सरकार ने इस पर कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है। ऐसे में इस कारोबार को लेकर अब तक असमंजस की स्थिति है।
एनसीआर का हिस्सा एक तिहाई कम

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) से भरतपुर बाहर होने के कगार पर है। पूर्व में हुई एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की बैठक में एनसीआर का क्षेत्र तय किया गया। इसमें हरियाणा और राजस्थान का इलाका कम करने पर सहमति बनी। अभी राजस्थान के अलवर और भरतपुर जिले एनसीआर क्षेत्र में शामिल हैं। नए क्षेत्र में अलवर को जगह मिलने की संभावना प्रबंल हैं, लेकिन क्षेत्र कम होने से भरतपुर का इससे छिटकना तय है। हालांकि प्रदेश सरकार के स्तर पर इसमें पहल होती नजर नहीं आ रही।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सीमा राजघाट से सौ किलोमीटर होने पर एनसीआर का एक तिहाई हिस्सा कम होगा। पड़ोसी प्रदेश उत्तरप्रदेश की बात करें तो यूपी की दो तहसीलों पर इसका असर पड़ सकता है। मुजफ्फरनगर की जानसठ और बुलंदशहर की शिकारपुर तहसील एनसीआर से बाहर हो सकती हैं। अभी तक एनसीआर की सीमा 55 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा थी। प्लानिंग बोर्ड की बैठक में इसे घटाकर 37115 वर्ग किलोमीटर किया जा रहा है।
जिले में रह जाएंगे हजारों वाहन

एनसीआर से बाहर होने के यदि फायदे की बात करें तो जिले के हजारों की संख्या में वाहन यहीं चल सकेंगे। अब तक 15 साल वाले पेट्रोल एवं 10 साल वाले डीजल के वाहनों को एनओसी लेकर बाहर करने का प्रावधान था। यदि भरतपुर इससे बाहर होता है तो यह वाहन यहीं चल सकेंगे। इसके अलावा एनसीआर में आने से प्रदूषण के चलते कई इंडस्ट्रीज बंद हो गईं। अब यदि एनसीआर क्षेत्र में भरतपुर नहीं रहा तो यहां उद्योग धंधे फिर से जीवंत हो सकेंगे।
आंकड़ों में एनसीआर

100 किमी होगी राजघाट से एनसीआर की सीमा

55 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा है अभी तक एनसीआर की सीमा

37115 वर्ग किलोमीटर रह जाएगी घटकर सीमा

8 जिले उत्तरप्रदेश के शामिल हैं
2 जिले हैं राजस्थान के अलवर और भरतपुर

13 जिले शामिल हैं हरियाणा के

पिछली साल का निर्णय यथावत

राज्य सरकार ने पूर्व में भरतपुर में दोघंटे पटाखे चलाने की छूट दी थी। इसमें भी ग्रीन पटाखा चलाने की ही अनुमति थी। पूर्व के निर्णय में अभी तक बदलाव नहीं किया गया है। पटाखों पर वैन होने और भरतपुर के एनसीआर में शामिल होने से जिले को दोहरा झटका लग रहा था, लेकिन दो घंटे की छूट ने लोगों के दिवाली के उत्साह को बढ़ाया है।
राज्य सरकार की अनिर्णय की स्थिति ने कारोबार को ठप सा कर दिया है। भरतपुर में कारोबार 60 प्रतिशत तक सिमट गया है। इससे पहले दो कारखाने बंद हो चुके हैं। असमंजस की स्थिति के चलते इस बार कच्चा माल भी नहीं मंगाया जा सका। पटाखा उद्योग दम तोड़ रहा है। ऐन वक्त पर आने वाले निर्णय से कारोबारी व्यापार नहीं कर पाते हैं।
– दीपक कुमार, चंदानी पटाखा कारोबारी भरतपुर

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