जुलाई 2019 से प्रदेश में ऑनलाइन पंजीयन की सुविधा शुरू हुई थी, जिसका उद्देश्य ऋण वितरण में पारदर्शिता लाना था। इसके तहत वर्षों से ऋण का लाभ ले रहे पुराने लगभग 39 हजार किसान सदस्यों को अपनी कृषि भूमि सहित दस्तावेज अपलोड करने थे, जिससे भूमि संबंधी ऑनलाइन स्थिति सामने आए और लिमिट के अनुरूप उसे ऋण मिल सके।
ऐसे में 60 प्रतिशत पुराने सदस्य ही अपने दस्तावेज अपलोड और अपने हिस्सेदारी की राशि जमा करा पाए। ऋण वितरण के दौरान उन्हें लिमिट के अनुसार निर्धारित ऋण मिला। वहीं सहकारी समितियों में हिस्सेदारी की राशि जमा नहीं कराने वाले 40 फीसदी पुराने सदस्यों को निर्धारित ऋण राशि से काटकर पैसा दिया जा रहा है। यह नियम है।
गौरतलब है कि ऑनलाइन प्रक्रिया में 32 हजार 708 नए किसानों ने पंजीयन कराया है। इनकी ऋण सीमा अधिकतम 25 हजार रुपए है। इनकी हिस्सेदारी संबंधी राशि जमा है। इसलिए ऋण में कटौती नहीं की गई। वहीं पुराने किसान सदस्य 39 हजार 16 हैं इनमें से 40 फीसदी किसानों ने हिस्सेदारी की राशि जमा नहीं कराई है। ऐसे में ऋण देते समय कटौती की जा रही है। इससे किसानों को भ्रम की स्थिति लग रही है।
किसानों को ग्राम सेवा सहकारी समितियों में आठ प्रतिशत जमा होता है। इसमें से केंद्रीय बैंक को छह प्रतिशत और अपेक्स बैंक को लगभग दो प्रतिशत देना होता है। हिस्सेदारी राशि नहीं देने पर ऋण से काट ली जाती है। सैंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक भरतपुर में प्रबंध निदेशक बिजेंद्र कुमार शर्माफसली ऋण पर किसान से आठ प्रतिशत हिस्सेदारी राशि ली जाती है। अगर राशि जमा है तो उसमें से काटते हैं नहीं तो ऋण से काटी जाती है। यह ऋण सिस्टम में अनिवार्य है।