कहा जाता है कि यह कैश काउंटर की दुकान थी, जहां से सेवानिवृत और सेवारत कर्मचारी दवाई नहीं मिलने पर एनओसी बनवाकर अन्य दुकान से खरीदकर विभाग से मेडिकल का भुगतान उठाते थे। लेकिन लाइसेंसीधारी व्यक्ति के नहीं होने से दुकान का ताला लग गया।
ताला लगने की स्थिति लगभग डेढ वर्ष से है, जो सहकारिता विभाग के ढुलमुल रवैये को दर्शा रही है। जबकि, जिले में लगभग 25 हजार पेंशनर और सैंकड़ों कर्मचारी हैं। इनकी सुविधा के लिए जनाना अस्पताल में दो और तीन दुकान आरबीएम में खोली गई। इनमें आरबीएम में दो संचालित हैं, वहीं एक पर ताला लगा है।
इससे यहां पर खुली दुकानों के एक-एक साप्ताहिक अवकाश भी तरस गए हैं। महीनों से ये दुकानें एक दिन के लिए भी बंद नहीं की गईं। इस कारण पेंशनर, सेवारत कर्मचारियों को दवा नहीं मिलने की स्थिति में एनओसी बनाने का भी भार अधिक हो गया।
इसलिए इन दुकानों पर भीड़ देखी जा सकती है, जिससे उपभोक्ताओं को परेशानी आती है। कहा जाता है कि बंद दुकान को संचालित करने के लिए डी-फार्मा का लाइसेंसी सहकारिता की ओर से जारी किया जाता है फिर भी लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में देरी गई। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है।
सहकारी उपभोक्ता थोक भंडार भरतपुर के महाप्रबंधक रविंद्र सोनी का कहना है कि आरबीएम अस्पताल परिसर में दवा उपभोक्ता भंडार की एक दुकान बंद है। पेंशनर्स की आवश्यकता को देखते हुए दुकान को शीघ्र चालू कर दिया जाएगा। इसके आदेश भी कर दिए हैं।