तो यह हो सकती है दिक्कत पूर्व में मीना को माइग्रेन की समस्या हुई। इसके लिए उसने लंबे समय तक दवाओं का सेवन किया। इसके बाद उसने जयपुर में चिकित्सक को दिखाया तब तक उसकी दोनों किडनी खराब हो चुकी थीं। जानकार बताते हैं कि ऐसे मरीजों को तुरंत डायलसिस सहित अन्य उपचार समय पर नहीं मिलने के कारण सांस रुकने और पेट में पानी भरने जैसी समस्या हो जाती है। मीना को यह समस्या करीब साढ़े तीन साल से है। आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर होने के कारण यह परिवार खाद्य सुरक्षा में शामिल है। ऐसे में वह भामाशाह के जरिए उपचार कराता है, लेकिन भामाशाह की एप्रूवल में देरी मरीजों के मर्ज को बढ़ाती नजर आ रही है।
बिक गई जमीन, छूट गई नौकरी लंबे समय से बीमारी से जूझ रही मीना के इलाज के लिए पति विष्णु भी यहां-वहां गुहार लगा रहा है। विष्णु के पास पहले खेती-बाड़ी के लिए जमीन थी, जो शुरुआती दिनों में इलाज कराने के कारण बिक गई। विष्णु पूर्व में शहर में गंगामंदिर स्थित एक इलेक्ट्रोनिक्स की दुकान पर काम करता था, लेकिन पत्नी की देखभाल के चलते उनकी नौकरी भी छूट गई है। आलम यह है कि अब विष्णु गांव में ही एक में खोखा टॉफी-बिस्कुट आदि सामान बेचकर परिवार की गुजर-बसर कर रहा है।
इनका कहना है मरीज ने किसी से सम्पर्क ही नहीं किया। मैं दो बजे तक अस्पताल में ही था। यदि मरीज आता तो तुरंत फोन करके उसकी समस्या का हल कराया जाता। हम ऐसे मरीजों को रोकते नहीं हैं। हमारी प्राथमिकता यह रहती है कि मरीज परेशान नहीं हो। इसके लिए कई बार नेट की प्रॉब्लम होती है तो हम एप्रूवल की प्रक्रिया बाद में कर लेते हैं। अभी दो दिन पहले ऐसी समस्या आई थी तो पांच-सात मरीजों की डायलसिस पहले कराई गई। कागजी कार्रवाई बाद में की गई। यदि मरीज गार्ड या किसी से भी सम्पर्क करता तो उसकी समस्या को हल किया जाता।
– डॉ. के.सी. बंसल, कार्यवाहक प्रमुख चिकित्सा अधिकारी आरबीएम भरतपुर