देवस्थान विभाग आत्मनिर्भर श्रेणी के मंदिरों में दोनों वक्त की पूजा-अर्चना व भोग-प्रसादी के प्रतिदिन 50 रुपए के हिसाब से वार्षिक 18000 रुपए भुगतान करता है। इस राशि से पूजा सामग्री और भोग की व्यवस्था करना मुमकिन नहीं है। ऐसे में मंदिरों में आने वाले चढ़ावे से पुजारियों को भोग-प्रसादी का काम चलाना पड़ता है।
फिर भी निदेशालय अपने आत्मनिर्भर श्रेणी के मंदिरों में लगे अंशकालीन पुजारी को 50 रुपए प्रतिदिन में भगवान का भोग लगवाकर काम चलवा रहा है। हालांकि, बीते वर्षों में भोगराज की राशि 225 रुपए मासिक थी, जिसे 50 रुपए प्रतिदिन किया गया था। अब महंगाई और बढ़ी तो भोगराज की राशि में भी और इजाफा होना चाहिए।
जिले में आत्मनिर्भर श्रेणी के 35 मंदिर हैं। इनमें झील का बाड़ा, बिहारी जी, गंगा मंदिर व लक्ष्मण मंदिर प्रमुख हैं। इनसे लाखों रुपए का राजस्व मिलता है। लेकिन, अन्य मंदिरों पर पूरी तरह भोग प्रसादी की व्यवस्था करना मुश्किल होता है। किला स्थित लाला जी महाराज मंदिर के पुजारी नरेश कुमार का कहना है कि मंदिर में दोनों समय 50 रुपए प्रतिदिन में रुई, घी, मिश्री, धूपबत्ती, कलावा, रोली-चावल, दूध, दही, मिठाई की व्यवस्था करना मुश्किल है। यह मंदिर में आने वाले चढ़ावे व दान राशि से भगवान की भोग प्रसादी का इंतजाम करते हैं। हालांकि, सरकार महीने में 1500 रुपए के हिसाब से वार्षिक राशि 18000 रुपए पुजारियों को देती है फिर भी ये पर्याप्त नहीं है।
–ये मंदिर देते हैं लाखों रुपए—
मंदिर राजस्व (सालाना)
कैलादेवी 50 से 55 लाख
बांके बिहारी 4 से 5 लाख
गंगा मंदिर 25 से 30 हजार
लक्ष्मण जी 20 से 25 हजार
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देवस्थान विभाग भरतपुर के सहायक आयुक्त गौरव सोनी का कहना है कि जिले में आत्मनिर्भर श्रेणी के मंदिरों में अंशकालीन पुजारियों को प्रतिदिन 50 रुपए के हिसाब पूजा व भोग प्रसादी की राशि दी जाती है। इस राशि को बढ़ाना सरकार पर निर्भर है।