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घपला छिपाने के लिए अब बिल देने से इंकार…

locationभरतपुरPublished: May 15, 2021 04:07:49 pm

Submitted by:

Meghshyam Parashar

-निजी हॉस्पिटल संचालकों की मनमानी, जिंदल हॉस्पिटल के और कारनामे आए सामने

घपला छिपाने के लिए अब बिल देने से इंकार...

घपला छिपाने के लिए अब बिल देने से इंकार…

भरतपुर. जिले में आपदा में भी अवसर तलाशने की परंपरा बंद नहीं हो रही है। यही कारण अब भी कुछ निजी हॉस्पिटल व निजी लैब सेंटरों पर मनमाने शुल्क के साथ मरीजों के परिजनों से वसूली का जा रही है। इसके अलावा जिस निजी हॉस्पिटल को कथित झूठी पहल बताते हुए वेंटीलेटर देकर मेहरबानी की गई थी। अब उसके ही और भी मनमानी के केस सामने आए हैं। उल्लेखनीय है कि राजस्थान पत्रिका ने नौ मई के अंक में गरीबों के हक की सांसों पर रसूख का साया शीर्षक से समाचार प्रकाशित कर जिला प्रशासन के काले कारनामे का खुलासा किया था। इसके बाद विपक्ष ने भी इस मुद्दे को जमकर उठाया था। इसी का परिणाम था कि राज्य सरकार को आनन-फानन में आदेश निकालना पड़ा कि अगर सरकारी अस्पतालों में अतिरिक्त संसाधन है तो वह निजी हॉस्पिटल को दिए जा सकते हैं। हालांकि विवादों में घिरे जिला प्रशासन ने तीन दिन तक झूठ बोलने के बाद इसे खुद की पहल बताने में भी गुरेज नहीं किया था, लेकिन यह सच उनकी पहल की घोषणा से पहले ही खुलकर आमजन के बीच आ चुका था। चूंकि पहले तो वेंटीलेटर का किराया आदेश पत्रिका के मुद्दा उठाने के बाद बैकडेट में जारी किया। फिर वे राजनेताओं के माध्यम से सरकार से आदेश जारी कराने की कोशिश के बीच बार-बार बयान बदलते हुए झूठ बोला जाता रहा।
केस नंबर एक

मौत के बाद बगैर बिल राशि दिए नहीं शव देने से किया इंकार
जुरहरा कस्बा निवासी शुभम का आरोप है कि जिंदल हॉस्पिटल में रात के समय मरीजों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता। शुभम बताते हैं कि उनकी पत्नी पलक (29) को 30 सितम्बर की रात को जिंदल हॉस्पिटल में डिलेवरी के लिए भर्ती कराया गया। रात में ही मैंने आठ यूनिट ब्लड एवं चार यूनिट प्लाज्मा की व्यवस्था की। इसके बाद भी वह लगातार ब्लड लाने के लिए दवाब बनाते रहे। शुभम का आरोप है कि रात्रि को यहां तैनात स्टाफ कभी बच्चेदानी में दिक्कत बताने लगा तो कभी मथुरा ले जाने की कहने लगा। बाद में पलक को आईसीयू में ले गए। इस दौरान सात हजार रुपए पहले ही जमा करा लिए और बाद में करीब 12-13 हजार रुपए की दवा दे दी। शुभम ने बताया कि पलक का रात्रि को ऑपरेशन किया गया, लेकिन उस समय यहां विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं था। पलक की मौत के बाद सुबह शव देने में भी अस्पताल प्रशासन ने आनाकानी की। इसका विरोध करने पर उलटे मेरे खिलाफ ही अभद्र व्यवहार करने और तोडफोड़ की रिपोर्ट कराई गई। शुभम ने कहा कि अपनी कमी छिपाने के लिए हॉस्पिटल प्रशासन ने दो माह बाद मेरे खिलाफ तोडफ़ोड़ करने का आरोप लगाते हुए एफआइआर दर्ज कराई। शुभम का आरोप है कि मुझे बार-बार पूछने पर भी अंत तक ऑपरेशन करने वाले चिकित्सक का नाम तक नहीं बताया गया। मुझे शव भी पैसे लेने के बाद दिया गया।
केस नंबर दो

बिना सिकाई किए जोड़ दी बिल में राशि
शहर के जिंदल हॉस्पिटल में पिता का इलाज कराने वाले मोहनप्रकाश उर्फ कुक्कू ने बताया कि उनके पिता एदल सिंह (70) निवासी गिरधरपुर को इलाज के लिए भर्ती कराया गया। कुक्कू ने बताया कि 13 दिन में उनसे दो लाख 91 हजार रुपए वसूल किए गए। इस दौरान तीन सिटी स्केन की गईं, जिनके 15 हजार रुपए वसूले। कुक्कू ने आरोप लगाया कि अस्पताल में उनके पिता को सिर्फ ऑक्सीजन लगाई जा रही थी। इसके प्रतिदिन 15 से 20 हजार रुपए वसूल किए जा रहे थे। इसमें नौ हजार बेड सहित अन्य खर्चे जोड़ रखे थे। उन्होंने बताया कि बिल में निबूलाइजर की राशि अलग से जोड़ रखी थी, जबकि उनके पिता को एक भी दिन सिकाई नहीं दी गई। काफी जद्दोजहद के बाद अस्पताल प्रशासन ने बाद में यह राशि लौटाई। खास बात यह है कि अस्पताल प्रशासन ने हमें कागज भी पूरे नहीं दिए। पूछने पर एक कर्मचारी ने बताया कि किसी ने इनकी शिकायत कर दी है, इसलिए बिल भी पूरे नहीं दिए जा रहे हैं।
केस नंबर तीन

निजी हॉस्पिटल में सीटी स्कैन के लिए तीन हजार रुपए
बयाना के खेड़ली गड़ासिया निवासी कुलदीप उपाध्याय ने बताया कि पत्नी नीतू की सीटी स्कैन कराई तो तीन हजार रुपए लिए गए। जब बिल मांगा तो इंकार कर दिया। कई बार बिल मांगने पर भी कुछ नहीं बोले, बल्कि अभद्रता करने पर उतर आए। ऐसे में हमें वहां से वापस आना पड़ा। शिकायत भी करें तो किससे करें, क्योंकि जिन्हें शिकायत की जाएगी। उनकी सह पर ही तो यह सारा खेल चल रहा है। इतना ही नहीं जिस सरकारी डॉक्टर को मरीज दिखाया गया था उसने ही कृष्णा नगर में संचालित एक निजी हॉस्पिटल में सीटी स्कैन कराकर लाने को कहा था। चूंकि डॉक्टर को घर पर ही मरीज दिखाया था। स्पष्ट है कि कहीं न कहीं कमीशन का खेल जुड़ा हुआ है।
अब बिल देने से इंकार कर रहे लैब सेंटर

शहर में निजी लैब सेंटरों पर प्रशासन की कोई लगाम नहीं है। इसका खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ रहा है। एक निजी लैब सेंटर संचालक तो आपदा में कभी 1600 तो कभी 1700 रुपए में सीटी स्कैन करने की राहत देने का दावा कर रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि वो भी तीन हजार रुपए वसूल कर रहा है। यह दावा करने वाले सेंटर का संचालक मरीजों के परिजनों को बिल भी नहीं दे रहा है।
ऐसा करेंगे तो मिलेगी राहत…करें उपभोक्ता आयोग में वाद दायर

जिला उपभोक्ता आयोग के सदस्य दीपक मुदगल ने बताया कि जिला प्रशासन की टीमें पूरे जिले में तत्काल कार्रवाई में लग रही हंै और जिला प्रशासन खूब चालान बना रहा है। अगर कोई उपभोक्ता फिर भी सन्तुष्ट नहीं है तो वह जिला आयोग में भी शिकायत लेकर आ सकता है। अगर शिकायत सही पाई गई तो आयोग कार्यवाही करेगा। इस महामारी के दौर में जो कोई मानदंडों के विरुद्ध अनुचित व्यापार करते हुए गलत तरीके से उपभोक्ताओं से अवैध राशि की वसूली की शिकायतें आ रही है तो उपभोक्ता आयोग में शिकायत की जा सकती है। सभी उपभोक्ता आवश्यक रूप से प्राप्त करें, पहले प्रशासन को शिकायत जरूर करें। अगर फिर भी उपभोक्ता सन्तुष्ट नहीं हो तो जिला आयोग में शिकायत करें। साथ ही कोराना गाइडलाइन का पालन करने की मांग की।

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