भरतपुर

चार साल पहले ही अयोध्या जा चुका बंशी पहाड़पुर का पत्थर, अब कंपनी भी कर चुकी निरीक्षण

-पर्यावरण स्वीकृति के अभाव में अब नहीं हो पा रही सप्लाई

भरतपुरAug 04, 2020 / 10:33 pm

Meghshyam Parashar

चार साल पहले ही अयोध्या जा चुका बंशी पहाड़पुर का पत्थर, अब कंपनी भी कर चुकी निरीक्षण

भरतपुर/रुदावल. अयोध्या में बनने जा रहे राम मंदिर में बंशी पहाड़पुर का सफेद पत्थर भी उपयोग लिया जाएगा। चूंकि चार साल पहले ही बड़ी मात्रा में पत्थर यहां से राममंदिर जा चुका है, लेकिन अब पत्थर की सप्लाई लीजधारकों को पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिलने के कारण अटकी हुई है। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर जिले के बंशी पहाड़पुर स्थित खदानों के पत्थर को पसंद किए जाने का कारण यह भी है कि यहां का पत्थर एक विशेष किस्म का है। यहीं कारण है कि दिल्ली का सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रपति भवन, लालकिला, अक्षरधाम मंदिर सहित प्राचीन भवन, फतेहपुर सीकरी का बुलन्द दरवाजा, आगरा का लाल किला, भरतपुर के गंगा मंदिर, लक्ष्मण मंदिर व जामा मस्जिद, जयपुर का विधानसभा भवन सहित विदेशों में अनेक विशाल मंदिर निर्माण में इसी पत्थर को लगाया गया है। यह पत्थर अधिक समय तक टिकाऊ है। इस पत्थर के अलावा बेहतर तरीके की गढाई एवं नक्काशी किसी दूसरे पत्थर पर संभव नहीं है। इस पत्थर में न तो सीलन आती है और न ही यह चटकता है। इसी को आधार बनाकर इस पत्थर का चयन राम मंदिर के लिए किया गया। राम मंदिर अयोध्या के लिए करीब दो दशक पूर्व पत्थर तराशने का काम शुरू किया गया था। पहाड़पुर क्षेत्र के एक पत्थर व्यवसाई ने राम मंदिर को पत्थर सप्लाई की थी। व्यवसाई की मृत्यु के बाद यहां से पत्थर की सीधी सप्लाई बंद हो गई है और पहाड़पुर का पत्थर अयोध्या भेजा जाता रहा है। पिछले दिनों एक कंपनी को राम मंदिर निर्माण का कार्य मिलने के बाद उसके अधिकारियों ने दौरा भी किया था, लेकिन पत्थर सप्लाई को लेकर ईसी की समस्या सामने आई थी।
पत्थर सप्लाई में बाधा बन रही ईसी

पहाड़पुर क्षेत्र में खनिज विभाग की स्वीकृत 40 से 50 खानें है जो कि पत्थर निकासी के लिए अधिकृत है, लेकिन इन खदानों से पत्थर निकासी के लिए पर्यावरण मंत्रालय की ओर से इन्वायमेन्ट क्लीरेंस(ईसी) नहीं मिलना मुसीबत बना हुआ है। इस पर्यावरण स्वीकृति के अभाव में खदानों से निकले पत्थर को नियमानुसार बाहर निकालना सम्भव नहीं है ऐसे में खदान मालिकों को ईसी जारी नहीं हुई तो खदान मालिकों के लिए मुंहमांगा मूल्य में बिकने वाला यह पत्थर चोरी छिपे बीच के दलालों को बेचना पड़ेगा।
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